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शनिवार, 20 जून 2015
एक दिन और गुज़रा
एक दिन और गुज़रा
सूरज फिर ढला
जिंदगी से समय कुछ और रीता
ढलता सूरज कहीं उगा होगा
चढती रात कहीं ढली होगी
धरती पर दिन रोज रहता है
रात रोज रहती है
आधा दिन आधी रात की है दुनिया
जिंदगी भी कुछ ऐसी ही
और तुम्हारे साथ रिश्ता भी .
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