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शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

शिकायतें




कई बार बहुत लाचार देखा है
जिसने चिट्ठी पकड़ाई
उसी ने पता छुपा रखा है.
अल्हड़ हैं, कभी कभी शऊर पा जाती हैं.
तेजकदम लौट आती हैं
कटी पतंग जैसे अचानक हाथ आ जाती है.
भादो का जैसे भारी बादल
जब चल नहीं पातीं हैं
हल्का होने तक बरसती रहती हैं.
नींद से अक्सर उलझती हैं
चैन के परिंदे उड़ाती हैं
मन में अंधड़ उगाती हैं.
रिश्तों के रेशे खींच खींच परखती हैं
गिरह गांठ ढूंढती हैं
रात जैसे जंगल में चलती है.
उड़ता हुआ कागज का आवारा टुकड़ा
किसी का लिखा ढोता हुआ
किसी और के पते पर पड़ा हुआ
आधी मिट्टी आधा पानी
आधी हवा आधी रोशनी
अंधेरे के खेत में धूप की फसल


मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

नए राज्य में किसान की पहली आत्महत्या



रयावरम गांव में सात साल का वम्शी एक सवाल है
उसकी चुप्पी बेहद खतरनाक है
बहुत सोचा होगा उसके बाप ने
जब वो बेटे से मिलने आखिरी बार जा रहा था
स्कूल के पास एक दुकान पर चुपके से बुलाया
बालों में हाथ फेरा, सीने से लगाया
फिर धीरे से पाकेट में हाथ डाला
कुछ देर टटोला
चीकट सा पांच का नोट निकाला
मिठाई खाते बेटे को देर तक निहारता रहा
फिर बोला- देखो खूब पढना और कुछ ज़रुर बनना
बेटा, मेरी कसम है किसान कभी मत बनना
वम्शी का बाप एक घंटे बाद घर में लटका मिला
देश में किसान की आत्महत्या पर फिर हाय तौबा
और फिर अपाहिज सन्नाटा मिला ।

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अफसोस



जैसे कम खाने की सोचना
और फिर भी ज्यादा खा लेना
जैसे ज़ायकेदार निवाले का
मुंह तक आकर गिर जाना
जैसे किसी का चेहरा पोंछते समय
उंगली का आंख में घुसड़ जाना
जैसे घर में बचे खुचे आटे में
अंदाजे से ज्यादा पानी गिर जाना
जैसे समय पर निकलने
और घर लौटने की कसम का रोज़ टूटना
जैसे किसी ज़रुरी काम का
समय गुज़र जाने पर फौरन याद आना
जैसे किसी चेक का
मियाद निकल जाने के बाद कहीं रखा मिलना
जैसे मिनट भर की देरी से
ट्रेन का सामने से निकल जाना
जैसे एक अदद लापरवाही का
बड़ा नुकसान दे जाना
जैसे संभाल लेने के बाद
बेशकीमती चीज का फिसलकर टूट जाना
जैसे किसी की चुगली करते
समय उसका वहीं कहीं खड़ा रहना
जैसे प्रेम में वेबवजह लड़ना
और उसको चुपचाप जाते देखना.


धूपदेखौनी



खाली खुली पेटियां औंधी पड़ी हैं
पीली सीली किताबें कागजों के ढेर पसरे हुए हैं
साल भर से पेटी, संदूक और बोरियों में बंद चीजें बाहर निकली हैं
दुआर से दालान तक सारी चौकियां और खाट बिछ गए हैं
समूचे गांव में धूप की फसल जवान है
गरम जैसे धान की छाती में उतरता रस
बंद पड़ी रज़ाइयां स्वेटर शालें कंबल
झाड़ झाड़ पसारे गए हैं
लेवा तोशक तकिया सबकी रिहाई है आज
बस्ती भर सीलन और फेनाइल की गोलियों की गंध फैली है
बेकार हो चुकी चीजों का ढेर लगा है
चारा काटनेवाली गड़ांसी का मुठ्ठा, गाय का टूटा पगहा
रही का डंडा और हलवाही का पैना
छप्पर में साल भर से खोंसे पड़े थे
आज फूटी हुई कड़ाही और पिचकी हुई तसली के साथ फेंके हुए हैं
अचार का खाली घड़ा, कोर-टूटा दही का करना
पीछे की कलई उतरने से बेकार हो चुका आईना
मां की पुरानी टिकुली, आलता की शीशी
झड़ी साड़ियां, फटी धोती और चूहे के कुतरने से खराब हो चुके कपड़े
होली का बचा गुलाल, टूटी कलमें और बरसाती चप्पलें
बीच आंगन में सबका ढेर लगा है
घर घर सफाई धुलाई में लगा है
चौंर से पीली मिट्टी आई है चूल्हा लीपने के लिये
नाद में कली चूने का घोल बना है दीवार पोतने के लिये
मुहल्ले में कहीं कबाड़ीवाला आवाज़ लगा रहा है
खेतों से होकर आती चूड़ीहारिनें दिख रही हैं
मां ने पलटकर सूरज को देखा
बांस की फुनगी पर है लेकिन काम भी बहुत बाकी है