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बुधवार, 12 मई 2021

इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं..

कोरोना डायरी 21 अप्रैल 2021  

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देश में आदमी डरावने तरीके से छटपटा रहा है। सरकारें कहती हैं, इलाज का इंतजाम है, परेशान होने की जरुरत नहीं है। यहां लोग हैं जो अपनों को लिए दर-दर भटक रहे हैं, रिरिया रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं। सांस की परेशानी ने जिंदगी मोहाल कर रखी है। मुझे तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा, बार बार अस्पतालों के मालिकों, विधायकों, सांसदों या फिर अपने सहयोगियों को फोन करना। ऐसी स्थिति आनी ही नहीं चाहिए। देश के हर नगारिक के पास खाने औऱ बीमार होने पर इलाज कराने के लाले नहीं पड़ने चाहिए। मेरे पास जो जिम्मदारी है, वह खुद में समय और समर्पण मांगती है। लेकिन इतने लोग परेशान हैं और मदद के लिए फोन, मैसेज, फेसुबक के जरिए संपर्क कर रहे हैं कि लगता है, इनको कैसे छोड़ा जा सकता है। हर संभव कोशिश कर रहा हूं यह जानते हुए कि यह तरीका कुछ लोगों के लिए तो काम कर सकता है लेकिन व्यवहारिक नहीं है। कोई भी आदमी इतने बड़े पैमानी पर मची तबाही में अपने दस बीस जाननेवालों के जरिए वो कर ही नहीं सकता, जिसकी जरुरत है। यह तो व्यवस्था का मामला है। चुस्त, दुुरुस्त, तैयार औऱ तत्पर। लेकिन व्यवस्था अगर चौकस होती तो इतने लोग सांस-सांस के लिये छटपटा क्यों रहे होते? घर-परिवार के लोग बदहवास इधर-उधर क्यों भागते फिरते?

यह व्यवस्था ही है कि नासिक में ऑक्सीजन लीक होने से 22 लोगों की जान चली गई। यह व्यवस्था ही है कि शहडोल मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खत्म हो जाने के चलते 22 लोग तड़प कर मर गए। लोग मर ही तो रहे हैं। कार में, सड़क पर, अस्पताल के बाहर। ऊपर से कालाबाजारी औऱ दलालों की चांदी आई हुई है। जान बचाने की खातिर इंसान अपनी सारी देह बेचने तक को तैयार है। इस मौके को ये गिद्ध अपनी नस्लों को मालामाल करने के मौके के तौर पर देख रहे है। पाप और नीचता के जरिए आई ऐसी कमाई से किसकी औलादें फली-फूली हैं, मैं नहीं जानता। लेकिन इंसान को इसी धऱती पर अपने किए का हिसाब देकर जाना होत है, ये पता है।
मैं अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ लोगों की जान बचाने, कुछ लोगों को राहत पहुंचाने के लिए जो बन पा रहा है, कर रहा हूं। इसमें कोई सुख या आनंद नहीं मिल रहा । लेकिन इंसान होने के नाते लगता है कि किसी के काम आ गया तो जाता क्या है। जिदंगी से बड़ी कोई चीज नहीं होती। इंसानियत से बड़ा कोई धर्म भी नहीं। कुछ साथी हैं जो कहने पर पूरी कोशिश कर रहे हैं मदद देने और मरीज को इलाज दिलवाने में, उनका मैं धन्यवाद भी नहीं कर सकता, क्योंकि उनका काम ऐसे औपचारिक शब्दों से कहीं बड़ा और मूल्यवान है। कुछ विधायक दोस्त, कुछ डॉक्टर मित्र और मेरे कुछ सहयोगी गजब का साथ दे रहे हैं। उनके सामने तो मेरे दोनों हाथ जुड़े हैं।