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बुधवार, 12 मई 2021

नेताओं पर नरसंहार का मुकदमा क्यों नहीं चलना चाहिए?

कोरोना डायरी 29 अप्रैल 2021 

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इस देश में अगर आम आदमी की आबादी मिलकर एक इंसान में तब्दील हो जाए तो उसका रुप इतना वीभत्स होगा कि पहचानना मुश्किल होगा। शरीर का रोम-रोम छलनी दिखेगा. छल-कपट, शोषण-दमन, फटकार-दुत्कार, लतियाने-जुतियाने, आघात-विश्वासघात से वह इतना छिला-उधड़ा होगा कि चमड़ी तक दरारें-वरारें नज़र आएंगी। एक-एक आदमी अपने-अपने दुर्भाग्य और दुर्दिन का बोझ लिए उम्मीद की मृगतृष्णा (फरेब) के पीछे लड़खड़ाता चलता रहता है। यह फरेब राजनीति गढती है औऱ गढती जा रही है।
कल से मेरी बेटी ने मुझसे कई बार हाथ जोड़कर कहा कि पापा शौर्या के दादा को बचा लो। शैर्या मेरी बेटी की दोस्त औऱ उसके दादाजी संतोष गुप्ता। कोविड से उनकी हालत बिगड़ रही थी और बेटी की दोस्त उससे बार-बार कह रही थी कि अपने पापा को बोलो मेरे दादाजी के लिए कुछ करें। .मैंने ना सिर्फ पोस्ट और ट्वीट किया बल्कि दो विधायकों को क़ॉल भी किया। फॉलोअप भी किया। लेकिन एक अच्छे-खासे परिवार का मुखिया सबकुछ होते हुए तड़प कर मर गया। वेंटिलेटर चाहिए था, नहीं मिला। लाख हाथ पांव मारने, रिरियाने-गिड़गिड़ाने के बावजूद।
मेरी बेटी ने मुझे शाम में फोन किया। आवाज भर्राई हुई थी। पापा। मैंने कहा- हां बेटा। आप शौर्या के दादा जी के लिए अब किसी को मत बोलिएगा। आवाज लड़खड़ा रही थी। मैंने पूछा- क्या हुआ बेटा? वो फूटकर रोने लगी। मैं पूछता गया बेटा क्या हुआ? उसको जहां सांस आई वहां बोली - ही इज नो मोर। आई थिंक दिस वॉज ओनली बिकॉज ऑफ मी। आई डिड नॉट प्रेशराइज यू दैट मच। मैंने कहा नहीं बेटा आपने मुझसे बार बार कहा और मैंने भी बार-बार कोशिश की। हम उनको नहीं बचा पाए क्योंकि इस शहर में वेंटिलेटर नहीं है। यहां इंसान के पास पैसे बहुत हो सकते हैं लेकिन जीने के लिए ऑक्सीजन नहीं है, वेंटिलेटर नहीं है। वह सारी जायदाद के बावजूद मर सकता है। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की कि गलती उसकी नहीं है। दरअसल यह इस सिस्टम का दोष है, जिसमें हम जी रहे है। मैंने किसी तरह उसको चुप कराकर फोन रखा और देर तक परेशान रहा।
एक छोटी सी बच्ची एक बुजुर्ग को बचाने के लिए जरुरी कोशिश ना कर पाने के अपराध बोध में मरी जा रही है और इस देश के नेता इतनी बड़ी तादाद में लोगों के मरने के बावजूद खुद को सही ठहराने में लगे हैं। एक दूसरे के सिर टोपी पहनाने और तमाम तरह के फरेब गढने में लगे हैं। हफ्ते भर से ऑक्सीजन का संकट है और अब भी है, मगर आसमानी किले बनाए जा रहे हैं। दरअसल इस देश में अभी जो कुछ हो रहा है वह नरसंहार जैसा अपराध है। मगर कोई नेता इसके लिए गुनहगार नहीं है। भला क्यों? एक हत्या पर एफआईआर दर्ज होती है, मुकदमा चलता है, सजा होती है। क्या देश में इतनी बड़ी तादाद में बदइंतजामी और लापरवाही के चलते लोगों की मौत का गुनहगार तय नहीं किया जाना चाहिए? क्या जांच के लिए कोई कमीशन नहीं बैठना चाहिए जो दो महीने में रिपोर्ट सौंपे औऱ जो भी या जितने भी अपराधी तय होते हैं उसको सजा दी जाए? कम से कम दोषियों को आजीवन राजनीति से बाहर किया जाए। लोग जितनी तकलीफ, डर और लाचारी में है, उसकी कोई सीमा नहीं है। एसी कमरों में और सुविधा से भरी जिंदगी जी रहे लोगों को कैसे मालूम होगा कि लोग किस तरह ऑक्सीजन-सिलेंडर के लिए भाग रहे हैं। अगर सिलेंडर मिल गया तो ऑक्सीजन के लिए धक्के खा रहे हैं। बेचैन और बदहवाश हैं क्योंकि कहीं किसी की जिंदगी सांसों के लिए तड़प रही है।
जो भर्ती हो गया उसे अस्पताल कहता है बेड है लेकिन ऑक्सीजन ले आओ। जो भर्ती नहीं हो सका उसको बचाने के लिए ऑक्सीजन ढूंढने-लाने में परिवार लस्त-पस्त हुआ पड़ा है। बहुत भयावह और हाहाकारी हालात हैं। ऐसी-ऐसी मुसीबत में फंसे लोग फोन करते हैं- ऐसे बिलखते हैं कि रुह दहल जाती है। हर बात की लड़ाई है यहां। सिम्पटम हैं तो पहले इस बात के लिए लड़िए कि टेस्ट कैसे होगा। अगर हो गया तो पांच-सात दिन रिपोर्ट के लिए इंतजार कीजिए। इस दौरान हालत बिगड़ गई तो अस्पताल लेगा नहीं क्योंकि रिपोर्ट नहीं है। जबतक रिपोर्ट आएगी हो सकता है तबतक मरीज अल्लाह को प्यारा हो जाए। गनीमत रही कि वो जिंदा रहा तो अस्पताल-इलाज के लिए भागना-हांफना पड़ेगा। किस्मत या जुगाड़ से कोई भर्ती हो गया तो वहां के हालात से ही अवसाद में चला जाता है। उधर, घरवाले परेशान रहते हैं कि मरीज का क्या हुआ। बताया ही नहीं जाता। कोविड वॉर्ड ज्यादातर जगहों पर गैस चैंबर वाला टार्चर सेंटर है। बेटी का फोन रखने के बाद आज मैं खुद को कितना लाचार महसूस कर रहा था, उसे मैं उसको बता नहीं सकता था। मैं नहीं सह सकता था कि बेटा मैं दिनभर हाथ जोड़ता हूं, मिन्नतें करता हूं, दोस्तों को बार-बार परेशान करता हूं, मेरे पास ऐसा कोई अधिकार नहीं कि चाह देता तो तुम्हारी दोस्त के दादा को भर्ती करवा देता। यह तो देशभर के दोस्तों के बूते है कि लोगों के लिए लड़ता हूं और ज्यादातर को इलाज मिलता है। जो लोग साथ दे रहे हैं उनमें से अधिकतर को मैं सीधे तौर पर नहीं जानता, लेकिन उनको मेरी कोशिश नेक लगती है और वे भले लोग इंसानियत निभाने में खुद को खपा रहे हैं। आज की भयानक स्थिति में अपने देश के लोगों के लिए जो संभव है कर रहे हैं।लेकिन सवाल इस देश की राजनीति और राजनेताओं का है। यह जमात आखिर कैसे इतने बड़े अपराध के बावजूद बिना नपे निकल सकती है?