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बुधवार, 12 मई 2021

बंगाल के इस नतीजे के आख़िर कारण क्या रहे

बंगाल चुनाव के नतीजे 2 मई 2021  

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बंगाल में ममता बैनर्जी की पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है। इतने की उम्मीद तो ममता तो छोड़िए उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नहीं की होगी। 2016 के मुकाबले ज्यादा सीटें और वोट में 5 फीसदी से ज्यादा का इजाफा। गजब है। बीजेपी को तो समझ नहीं आ रहा होगा कि ऐसा हो कैसे गया! पते की बात ये है कि बंगाल में खेला होबे वाला पत्ता चल गया। बीजेपी आसोल पोरिबर्तन और सोनार बांग्ला करती रही, लेकिन ममता के आगे एक नहीं चली। बंगाल की जनता के फैसले को जब आप समझने की कोशिश करते हैं तो चार बातें बड़ी साफ साफ दिखती हैं।
बीजेपी का ममता पर हद से ज्यादा हमला करना -
चुनावी रण में बीजेपी भारी भरकम सेना के साथ बंगाल में उतरी थी। हर जिले हर गांव में बीजेपी के लोग मौजूद थे। एक माहौल तैयार किया गया कि ममता ने बंगाल का बेड़ा गर्क किया है। कटमनी औऱ टोलाबाजी ने लोगों का जीवन मोहाल कर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तोइन मुददों को लेकर ममता के खिलाफ खिलाफ कार्पेट बॉम्बिंग की। बल्कि तीखे तंज वाले लहजे में दीदी ओ दीदी भी कहते रहे। उसी तीखेपन के साथ अमित शाह और पार्टी के बाकी नेता भी ममता पर हमला करते रहे। कई बार यह निजी भी हो गया। ममता के भतीजे अभिषेक बैनर्जी के की पत्नी से पूछताछ के लिए सीबीआई का घर चले जाना और ममता के पैर टूटने की मेडिकल रिपोर्ट मांगने जैसे मामलों ने बीजेपी का नुकसान ही किया। लोगों को यह सब ममता के साथ खड़ा करता रहा।
ममता का पैर टूटना और टीएमसी का बंगाल की बेटी के नारे को मजबूत करना-
प्रचार के दौरान ममता बैनर्जी का बांया पैर टूट गया। उनका इलाज हुआ, प्लास्टर चढा और करीब 48 घंटे बाद ममता फिर प्रचार के लिए निकल पड़ीं। वे स्ट्रेचर पर आतीं लोगों से बैठकर ही बात करतीं। ममता की चोट के बाद भी उनका तेवर जुझारुपन से भरा था। टीएमसी ने ममता को बंगाल की बेटी कहकर लोगों के बीच रखा और बीजेपी के लोगों को बाहरी बताया। कोशिश ये थी कि बंगाली समाज जो अपनी अस्मिता को लेकर संवेदनशील रहता है, उसकी नाजुक कड़ी को पकड़ा जाए। टीएमसी ने नारा दिया - 'बांग्ला निजेर मेये के ई चाए.' यानी 'बंगाल अपनी बेटी को ही चाहता है'. इस अभियान ने बंगाली समाज की चेतना को ममता से जोड़ने का काम किया।
ममता के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी का ना होना -
ममता बैनर्जी की सरकार भले ही दस साल से है लेकिन उनको नापसंद करने का कोई मजबूत कारण बंगाल में नहीं था। बीजेपी ने आरोपों की लंबी फेहरिस्त रैलियों में और प्रचार में रखीं। लेकिन ममता की सादगी और स्ट्रीट फाइटर की उनकी इमेज के के कारण ये आरोप उनपर चस्पा नहीं हो पाए। अलबत्ता ममता ने बीजेपी को डिस्क्रेडिट करने की कोशिश की औऱ इसमें वो कामयाब दिख रही हैं। टीएमसी से बड़ी तादाद में नेता बीजेपी में आए। ममता ने उन तमाम नेताओं को बेईमान और दगाबाज कहा और यह मैसेज भेजने देने की कोशिश की कि बीजेपी ऐसे ही लोगों को अपने यहां जगह दे रही है जिनको उन्होंने पूछना बंद कर दिया था। टीएमसी से बीजेपी में आए ज्यादातर नेता चुनाव हार गए हैं।
बीजेपी के तुष्टिकरण के दांव का नहीं चलना -
मुस्लिम आबादी का कुल आबादी के एक तिहाई होने के बावजूद बंगाल का समाज उत्तर भारतीय राज्यों के समाज की तरह नहीं है. बीजेपी ने ममता बैनर्जी की सरकार को मुसलमान परस्त और हिंदू विरोधी साबित करने की बहुत कोशिश की। ममता पर इसका दबाव भी नजर आया जब उन्होंने खुद के ब्राम्हण और शांडिल्य गोत्र से होने की बात कही। इस बयान को बीजेपी ने काफी उछाला भी लेकिन ऐसा लग रहा है कि इसका वोटर पर कोई असर पड़ा नहीं। उधर मुस्लिम मतदाता ममता के साथ पूरी ताकत से खड़ा था। और इतना कि अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी का खाता नहीं खुल पाया। उधर कांग्रेस और लेफ्ट का भी बंगाल के इतिहास में अबतक के सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। सच पूछिए तो प्रदर्शन ही नहीं है।