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सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

चलो छोड़ो भी अब

कितनी जरुरी लगती है, बस इक बात ही तो है
हर बात अधूरी लगती है, बस इक बात ही तो है.
कुछ तो है जो रुकता है, गोया सांस रुक गई
तुम कहते हो क्या है, बस इक बात ही तो है.
जोड़-घटाकर जिंदगी क्यों हिसाब करे मुझसे
सब तो हारे बैठा हूं, बस इक बात ही तो है.
तुम्हारी नीदों के परिंदे रात भर उड़ाता अगर
उड़कर मेरे पास आते, बस इक बात ही तो है.
उम्मीद का मारा फिर से उम्मीद लगाए बैठा है
शायद बहुरेंगे अबकी दिन, बस इक बात ही तो है.