हिंदी सिनेमा ने एक ऐसा कलाकार खोया है जिसने अदाकारी का झंडा कभी झुकने नहीं दिया. कलाकार, किरदार को कितना ताकतवर बना सकता है- यह ओम पुरी ने बार-बार साबित किया. एक बार सोचिए कि अर्धसत्य में इंस्पेक्टर का रोल अगर ओम पुरी नहीं करते तो क्या वो इतना मजबूत हो पाता? अगर तमस जैसे सीरियल में ओम पुरी नहीं होते तो उसमें वो ताकत पैदा हो पाती?
गोविंद निहलानी साहब को यह बात पता थी, इसीलिए उन्होंने ओम पुरी को चुना. वैसे निहलानी साहब को अपनी फिल्म आक्रोश में ही ये पता हो गया था कि यह कलाकार हटकर है. आक्रोश ओम पुरी की पहली हिट फिल्म थी. वे चेहरे से जितने अनगढ थे, जीवन में भी वही खुरदरापन लिए रहे. जुबान, जज्बात और जिंदगी तीनों के लिए उन्होंने कभी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं तय की.
ओम पुरी पर्दे के जीवन में जितने सधे रहे, निजी जीवन में उतने ही उलझाव में रहे. उनकी पत्नी नंदिता पुरी ने अपनी किताब unlikely hero : om puri में ओम के जीवन की सारी परतें उधेड़ कर रख दीं. इस किताब ने ओम को हिला कर रख दिया था.
ओम पुरी की पीढी ने हिंदी सिनेमा को बहुत ताकत दी है. नसीर, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, अनुपम खेर, कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकार बेमिसाल रहे हैं और ओम इनमें अपनी अलहदा पहचान के लिये हमेशा याद किए जाएंगे.