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बुधवार, 12 मई 2021

नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी का कॉल

 



नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी के यहां से फोन आया। कहा गया कैलाश जी आपसे बात करना चाहते हैं। कैलाश जी के साथ मेरा आत्मीय संबंध है। समय-समय पर उनके पास जाकर कुछ जरुरी बातों पर चर्चा करता रहता हूं। मुझ पर उनका स्नेह रहता है। फोन जैसे ही उनको दिया गया- उसी अपनेपन से उन्होंने बात शुरु की। मुझे अचरज हुआ कि आजकल कोरोना मरीजों की खातिर जो कुछ मैं कर रहा हूं, उसकी खबर उनतक पहुंचती है।

कोरोना के इस दौर में वैसे मैं कुछ महान नहीं कर रहा हूं। एक सजग नागरिक के नाते जो करना चाहिए, वही कर रहा हूं। अपने संपर्कों, साधनों, संसाधनों की मदद से जो कर पाने की गुंजाइश बनती है उतना कर रहा हूं।
देश में साथियों की एक जमात बन गई है, जो आवाज लगाते ही जुट जाती है और जहां जरुरत होती है, मदद पहुंच जाती है। इस दौर में मेरा निजी अनुभव ये रहा है कि इस देश में संकल्प और नीयत- यही दो ठीक हों तो आपके साथ समाज का हर आदमी खड़ा हो सकता है। मैंने बस उन्हीं दोनों का आसरा ले रखा है और मदद में लगा रहता हूं। यह अभियान उसी ताकत और शिद्दत से आप इंडिया न्यूज पर भी देख सकते हैं।
कैलाश जी को मेरा प्रयास भला लगा , उन्होंने अपनी सदिच्छा मुझतक पहुंचानी चाही और बात की। 20 मिनट की बातचीत में अधिकांश निजी और वैचारिक था- जो सिर्फ हम दोनों के लिए ही था। इसलिए कैलाश जी का शुभ संदेश ही आप लोगों के बीच रख रहा हूं। बहुत शुक्रिया कैलाश जी।


राजीव प्रताप रुडी ऐंबुलेंस कांड पर पत्रकार गिरीश मालवीय की पोस्ट

 पत्रकार गिरीश मालवीय ने राजीव प्रताप रुडी ऐंबुलेंस कांड पर एक पोस्ट लिखी है। जस का तस रख रहा हूँ।

द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ राजीव प्रसाद रूड़ी एम्बुलेंस स्कैम :
कल से सोशल मीडिया पर धमाल मचा हुआ है कि बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री व राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी के अमनौर स्थित कार्यालय परिसर में 40 एंबुलेंस खड़ी है ओर जनता महामारी के इस दौर में मरीज़ो को अस्पताल पुहचाने के लिए परेशान हो रही है दर दर की ठोकरे खा रही है,......दरअसल यह सारा मामला पप्पू यादव के ट्वीट से शुरू हुआ .......उसके बाद क्या घटनाक्रम चल रहा है वो आप सब खबरों के जरिए जान ही लेंगे उसे बताने में मेरी रूचि भी नही है.....
मुद्दे की बात तो यह है कि जब ऐसी महामारी चल रही है तो ये सारी एम्बुलेंस आखिर खड़ी ही क्यो थी !.......
दरअसल इसको समझने के लिए आपको सांसद विकास निधि का गणित समझना होगा , इसे सिर्फ राजीव प्रताप रूड़ी ओर पप्पू यादव की आपसी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के रूप में मत देखिए यह बड़ी पिक्चर है......
क्या आप जानते हैं कि हर संसद सदस्य को अपने क्षेत्र के विकास के लिए हर साल 5 करोड़ का फंड अलॉट किया जाता है !....इस फंड के अंतर्गत संसद सदस्य अपने संसदीय क्षेत्र में विकास के छोटे-मोटे कार्य करा सकता है. फंड की मॉनिटरिंग केन्द्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा की जाती है. फिलहाल 6 अप्रैल 2020 को मोदी सरकार ने इसे दो साल के लिए सस्पेंड कर दिया गया है शायद 500 से अधिक संसद सदस्यों को देने के लिए मोदी सरकार के पास फंड ही नही है.......
दरअसल इस फंड में जमकर भ्रष्टाचार होता है लेकिन यह भ्रष्टाचार सामने नही आता, क्योकि सेटिंग जबरदस्त होती है..... स्कीम के मुताबिक़, सांसद सिर्फ़ कामों की अनुशंसा कर सकते हैं लेकिन असल में होता ये है कि सांसद अनौपचारिक रूप से ज़िला प्रशासन को बताते हैं कि काम किसे दिया जाना है खरीदी कैसे होने हैं कौन सी संस्था/ NGO उनकी फेवरेट हैं जिसे यह वाहन चलाने को देने चाहिए......
सांसद क्षेत्र विकास निधि की स्कीम जिस तरह से चल रही है वो सिर्फ सांसदों के फायदे के लिए है. एम्बुलेंस खरीदना भी इस फंड को ठिकाने लगाने का बहुत बढ़िया रास्ता है क्योंकि कीमत चुकाने में अच्छी खासी कमीशन बाजी होने की संभावना रहती है
रूड़ी जी की एम्बुलेंस खरीद तो कुछ भी नही है, दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने सांसद निधि से 3 गुना दामों में 200 ई-रिक्शा खरीदवा दिए जो ई-रिक्शा 60-70 हजार रुपए मिल जाता है, उसे 2.25 लाख रुपये में खरीदा गया अब वह सब कबाड़ हो रहे हैं भाजपा की ईस्ट एमसीडी के गराज में दो साल पहले खरीदी गई 200 गाड़ियां खड़ी-खड़ी कूड़े में तब्दील हो गयी.....
एम्बुलेंस बनाने में भी वाहनों में कुछ अंदरूनी परिवर्तन किए जाते हैं और कुछ तकनीकी परिवर्तन भी होते हैं जैसे GPS लगाना आदि... इससे कीमतों में अनाप शनाप बढ़ोतरी दिखा दी जाती है और उसे सांसद और जिला प्रशासन की मिलीभगत से बड़ी खरीद का ऑर्डर देकर एक ही बार मे सांसद निधि को निपटा दिया जाता है...... यह बहुत कॉमन प्रेक्टिस है..... लेकिन रूड़ी जी का मामला एक ओर स्टेप आगे बढ़ गया था.....
दरअसल एम्बुलेंस ख़रीदी के बाद जिला प्रशासन इसे चलाने के लिए किसी NGO को दे देता है ओर उसे प्रतिमाह लाख-दो लाख रुपये इन एम्बुलेंस के संचालन के लिए जिला प्रशासन को देने होते हैं .....ओर इस नाते NGO संचालक मोटा भाड़ा मरीजो से वसूलता है....जब यह होता है तब स्थानीय सांसद महोदय का पेट दुखने लगता है क्योंकि उसे लगता है कि माल तो उसने लगाया ओर कमाई कोई और खा रहा है यानी लालच का मोटा सा कीड़ा उनके दिमाग मे कुलबुलाने लगता है ......वो सोचते है कि यह NGO वाला काम भी अपने अंडर ही करवाए..... राजीव प्रताप रूड़ी वाले केस में एग्जेक्टली यही हुआ है........
रूडी जिस लोकसभा सीट से आते हैं वो एक ग्रामीण बाहुल्य इलाका है इसलिए उन्होंने अपने संसदीय कोष से करोड़ों की एंबुलेंस खरीद तो लिया लेकिन किसी एक NGO को सौपने के बजाए उसे अलग अलग ग्राम पंचायतों में संचालन के लिए अलग अलग पंचायत प्रतिनिधियों को सौपने का निर्णय लिया, ताकि पूरा कंट्रोल रहे इसके लिए उन्होंने एक बडी मीटिंग बुलाई ....ओर 'सांसद-पंचायत एंबुलेंस सेवा' की शुरुआत की (न्यूज़ 18 में इस बाबद पूरी रिपोर्ट विस्तार से छापी हैं....लिंक कमेन्ट बॉक्स में ) लेकिन इन एंबुलेंस को संचालित करने से पंचायत प्रतिनिधियों ने इनकार कर दिया, उसके एग्रीमेंट की शर्तों से वह सहमत नहीं थे....
जिला प्रशासन भी इस विवाद में पड़ना नही चाहता क्योंकि रूड़ी सत्ताधारी दल के मजबूत सांसद हैं केंद्रीय मंत्री रहे हैं और राष्ट्रीय प्रवक्ता भी है....... इसलिए पिछली मीटिंग के बाद से ही वह सारी एम्बुलेंस उनके कार्यालय के पीछे खड़ी हुई है..... इसे डेढ़ साल से भी ऊपर हो चुका है और पड़े पड़े एम्बुलेंस वाहन कबाड़ में बदल रहे हैं.......
तो यह थी रूड़ी जी की दर्जनो एंबुलेंस की असली अनटोल्ड स्टोरी.....अगर आप अपने जिले के सांसद की सांसद निधि की अंदरूनी जानकारियां निकलवाएंगे तो आपको भी ऐसी ही कई कहानियां पता चल जाएंगी.......

परहित सरिस धरम नहीं भाई

कोरोना डायरी 8 मई 2021 

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देश के किसी भी हिस्से में बात कीजिए, वहां के सांसद साहब औऱ विधायक शायद ही लोगों के संपर्क में आजकल हैं। अपवाद होता है, होगा भी। लेकिन सामान्य स्थिति यही है। महानगरों औऱ दूसरे दर्जे के शहरों में मीडिया की मौजूदगी से वहां के कोहराम और लचर इंतजाम की खबरें देश देख-सुन रहा है। लेकिन छोटे-छोटे शहरों और दूर-दराज के गांवों तक पर कोरोना का कहर टूटा हुआ है। पत्रकार औऱ निवाण टाइम्स के संपादक कपिल त्यागी के ट्वीट को उदाहरण के तौर पर रख रहा हूं। वे एक जगह लिखते हैं कि – “ रोहतक के टिटौली गांव में कोरोना का कहर, 10 दिन में 40 लोगों की मौत, 1 दिन में 11 चिताएं जलने के बाद मानो लोगों की सांसे तक रुक गई हैं। गांव के लोग घर से बाहर निकलने में कतरा रहे हैं।“ दूसरे ट्वीट में वे लिखते हैं- “ मेरठ के इकरी गांव में पंचायती चुनाव ने कहर बरपा दिया है। गांव मे सिर्फ 40 टेस्ट किए गए, जिनमें से 21 पॉजिटिव निकले। अबतक छह लोगों की मौत हो चुकी है। यह केवल इकरी गांव की कहानी नहीं है, गांव-गांव का यही हाल है। युद्धस्तर पर काम करना होगा।“ कपिल के ट्वीट हरियाणा औऱ उत्तर प्रदेश के गांवों की असलियत बता रहे हैं। अब बिहार चलिए। दो हफ्ते पहले भोजपुरी फिल्म के गीतकार-संगीतकार श्याम देहाती की कोरोना से मौत हो गई। उनके अंतिम संस्कार में 54 लोग शामिल हुए और वे सब कोविड पॉजिटिव हो गए। एक ही गांव के 54 लोग। सोचिए आज उस गांव का क्या हाल होगा! हुआ ये कि श्याम देहाती मुंबई से अपने गांव महुई आए। जब संक्रमित हुए तो इलाज चला, लेकिन बच नहीं सके। बिहार के कई गांव ऐसे हैं जहां लोग बड़ी तादाद में कोविड पॉजिटिव हैं। इलाज का इंतजाम नहीं है। य़ह स्थिति देश के सभी राज्यों में है। लेकिन क्या मजाल कि सांसद और विधायक- जो मौजूदा व्यवस्था है उसका पूरा फायदा लोगों को मिल सके- इसके लिए मुस्तैद और संपर्क मे हों! 102 की एंबुलेंस सेवा पर फोन लगाकर देखिए क्या हाल है! कई जगहों पर संसाधन हैं लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है, क्योंकि जिनलोगों पर जवाबदेही है, उनको इस बात से मतलब ही नहीं रहता कि एंबुलेंस-बेड-ऑक्सीजन-दवा से लोगों का इलाज हो सकता है। मानसिकता औऱ संस्कार ही लापरवाही और लुंजपुज व्यवहार से भरे हैं। आज ही एक चैनल पर खबर देख रहा था, सहरसा में दो सौ करोड़ का कोविड अस्पताल बनकर चकाचक तैयार है। 60 मरीजों के लिए पूरी तरह लैस।लेकिन बंद है। ऐसे ही खड़े-खड़े सड़ जाएगा लेकिन कोई पूछेगा नहीं कि आखिर ऐसा क्यों है? डीएम, बीडीओ, विधायक, सांसद सब अपने-अपने में रमे रहते हैं। लूट करवा लो। कमीशन खिलवा लो। अटारी पिटवा लो। लेकिन जो काम जरुरी और जनहित का है, उसके बारे में चिंता नहीं करनी है।
ऐसे में कुछ नेताओं को मैंने निजी तौर पर अपनी जमात से हटकर लोगों की मदद में जुटे देखा। आप यह भी कह सकते हैं कि ऐसा वे अपने भविष्य को ठीक करने के लिए कर रहे हैं तो यह भी बताना चाहिए कि जो कहीं नहीं दिख रहे, फोन और घर के दरवाजे बंद किए बैठे हैं- वे आगे लोगों के बीच नहीं आएंगे क्या? फिर? मैं यह मानता हूं कि इन लोगों में इंसानियत और समाज को लेकर अपनी जिम्मेदारी का एहसास है।
कल मैं बचपन के अपने मित्र के रिश्तेदार को टाटा हॉस्पिटल, जमशेदपुर में आईसीयू बेड दिलवाने की कोशिश में लगा था। उनकी हालत तेजी से बिगड़ रही थी। मैंने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से लेकर राहुल गांधी तक को अपने ट्वीट में टैग किया। इसके बाद में अपनी जान-पहचान के लोगों को मदद के लिए फोन भी कर रहा था। इसी क्रम में टीवी पत्रकार और मेरे लिए छोटे भाई की तरह चंदन सिंह का फोन आया। “सर, मैंने कुणाल सारंगी जी को कहा है, वे लग गए हैं। थोड़ा समय दीजिए, काम हो जाएगा” चंदन ने कहा। मैंने कहा थोड़ा फॉलो कर लेना जरुरी है। करीब तीन घंटे बाद मेरे मित्र के रिश्तेदार को आईसीयू बेड मिल गया। कुणाल सारंगी ने ऐसा नहीं कि मेरे लिए अलग से जाकर कुछ नया किया, बल्कि पता करने पर मालूम हुआ कि वे दिन-रात लोगों को इलाज दिलवाने और उनकी जान बचाने में लगे हुए हैं। वे
पूर्व विधायक हैं और आज की तारीख में झारखंड में बीजेपी के प्रवक्ता हैं। पढे-लिखे, सुलझे और समझदार नेता है। आज जब नेता नजर नहीं आ रहा है, कुणाल सारंगी जनता के बीच हैं। जनता की खातिर टेस्ट से लेकर एडमिशन तक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस देश को खासकर झारखंड के लोगों को यह जरुर याद रखना चाहिए।
गुरुवार की रात कानपुर से मेरे एक नजदीकी परिवार का फोन आया। लखनऊ में एक सज्जन मनोज वर्मा को तुरंत आईसीयू बेड की जरुरत थी। ऑक्सीजन लेवल सपोर्ट के साथ 65 था। ऐसे तो 50 या उसके नीचे आ रहा था। मैंने ट्वीट और पोस्ट करने के बाद दो लोगों को फोन किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार सिंह को औऱ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया को। मैंने यह भी कहा कि जिस अस्पताल में हैं, वहां आईसीयू बेड नहीं है तो एक काम कर सकते हैं- मुख्यमंत्री दफ्तर अगर सिफारिश कर दे तो डीआरडीओ ने जो अस्पताल बनाया है, वहां आईसीयू बेड मिल सकता है। दोनों युद्दस्तर पर लग गए। इस तरह की तीन-चार मिनट में अनुराग भदौरिया ने सरकारी अप्रूवल का कागज मुझे व्हाट्सैप कर दिया। मृत्युंजय जी का फोन आने लगा – उनलोगों को बोलिए फोन उठाएं, लगातार करने पर भी कोई उठा नहीं रहा। मैने परिवार को बोला- बात हुई। संयोग ऐसा बना कि मरीज को उसी अस्पताल में आईसीयू बेड मिल गया।
अनुराग भाई को आप दिन भर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाते, बेड दिलवाते, उनका टेस्ट करवाते पाएंगे। बहुत मुमकिन है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकाक्षाएं उनसे ये करवाती हों, लेकिन आदमी समाज के काम आ रहा है यही बात ऐसे हर सवाल को बेमानी कर देती है। मृत्युंजय जी राजनेता नहीं हैं लेकिन मुख्यमंत्री से जुड़े हैं। उनको पता है कि उनकी छवि से मुख्यमंत्री को फायदा या नुकसान हो सकता है। लिहाजा वे खुद से जितना संभव हो पाता है, लोगों की मदद में लगे रहते हैं, यह मैने निजी तौर पर देखा है।
नोएडा में बिहार के पूर्व डीजीपी नीलमणि साहब के बेटे मनोज श्रीवास्तव आम्रपाली सिलिकॉन सिटी में रहते हैं। ऑक्सीजन लेवल 80 पहुंच गया और शहर में किसी भी अस्पताल में जगह नहीं मिल रही थी। बीजेपी के पूर्व सांसस स्व. लालमुनि चौबे के पुत्र और छोटे भाई सरीखे शिशिर चौबे ने मुझे यह बात बताई। मैं मदद के लिए तुरंत ट्वीट और पोस्ट करने के बाद फोन करने लगा। उधर ट्वीटर और फेसबुक पर लोग उनके लिए अस्पताल और फोन नंबर डालने लगे, जहां से सहायता मिल सकती थी। इसी दौरान फिल्म एक्ट्रेस तापसी पन्नो ने भी मेरे ट्वीट को रीट्वीट किया। मुंबई में बैठकर एक फिल्म स्टार को नोएडा के एक आदमी की चिंता हुई यह इंसानियत की पहचान तो है ही। खैर, कुछ देर बाद मेरी दोस्त स्वाति शर्मा का फोन आया कि रोहित ने इंतजाम करवा दिया है, आप उनको बोलिए कि फोन उठाएं। रोहित मतलब हम दोनों के कॉमन फ्रेंड औऱ बीजेपी के प्रवक्ता रोहित चहल। मैंने शिशिर को फौरन फोन किया औऱ कहा कि उनको बोलो फोन उठाएं। मनोज जी का मेट्रो अस्पताल में एडमिशन हो गया। अभी वे बेहतर हैं। रोहित का जिक्र मैं इसलिए करना चाहता हूं क्योंकि वे कोविड के इस भयानक दौर में अपनी क्षमता से आगे जाकर लोगों की काफी मदद कर रहे हैं।
जीवन में कुछ लोग बहुत जरुरी से होते हैं। उनके बिना आपका अपना दायरा पूरा नहीं होता। उनमें से ही हैं- अमित आर्या। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया सलाहकार। अमित भरोसे और अपनेपन का दूसरा नाम हैं। मेरे जीवन में ऐसे लोगों की संख्या गिनी-चुनी है। फोन आया। सर, एक मित्र हैं – संजय पांडे। चंडीगढ से निकले हैं, सोनीपत तक आ गए हैं। उनके पिता जी नोएडा के आम्रपाली प्लैटिनम में रहते थे, उनकी मौत हो गई है। एक एंबुलेंस चाहिए नोएडा से गढ मुक्तेश्वर तक के लिए। मैंने बिना डिटेल्स साझा किए बस इतना ही ट्वीट किया कि एक मित्र के पिता का निधन हो गया है। अंतिम संस्कार के लिए नोएडा से गढमुक्तेश्वर तक के लिए एंबुलेंस मिल जाएगी क्या? ये दुनिया जिसे आभासी कहते हैं, निहायत अपनी है। बिल्कुल पास और जज्बाती। कई दोस्तों ने मदद के लिए लिखा। इसी दौरान देश के जाने माने कवि और प्रखर वक्ता कुमार विश्वास के दफ्तर का ट्वीट आया- सर, नंबर दे दीजिए हमलोग बात कर रहे हैं। मैंने नंबर दे दिया।
कुमार विश्वास ( वैसे मैं कुमार भाई कहता हूं) मेरे जीवन के उसी दायरे में आते हैं जिसमें अमित आर्या और कुछ और चुनिंदा दोस्त-भाई, जिनके बिना जीवन पूरा नहीं होता। जो आपके भरोसे और भाईचारे की दुनिया को लबालब भरकर रखते हैं। यारों के यार, जानदार और शानदार इंसान कुमार विश्वास। हमारे रिश्ते पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन एक इंसान जो टके की बात और टनाटन कहने में ही जीता है, जिसने कहने और कह जाने के कारण क्या-क्या नुकसान नहीं उठाया है, उसकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो 16 आने इंसान है। कुमार की दुनिया बड़ी है, लेकिन अपने सीमित। उनका दफ्तर आज लोगों का दुख कम करने और पीठ पर अपनों जैसा हाथ रखने में लगा रहता है। गाड़ी, ऑक्सीजन सिलेंडर, एडमिशन के लिए कई लोगों से निवेदन और ना जाने क्या-क्या। कुमार ना भी चाहें तो कोई सवाल नहीं कर सकता। लेकिन अपने जरिए अपने आगे रखे जानेवाले सवालों का जवाब देने के लिए कुमार विश्वास लोगों के बीच हैं। उनकी टीम ढूंढती रहती है कि कहां मदद पहुंचायी जा सकती है। यह कुमार की कथनी-करनी के संतुलन का उदाहरण है।
मैंने ऊपर जिन लोगों का जिक्र किया है, उनकी खूबी क्या है? वे बड़े बड़ों का सहयोग कर सुर्खियां बटोरने में यकीन नहीं कर रहे, बल्कि वे इस देश के साधारण और मदद के लिए मुंह ताक रहे लोगों की तरफ हाथ बढा रहे हैं। ऐसे लोगों को याद रखा जाना चाहिए। इनकी तरह हजारों लोग देश में लगे हुए हैं। मैं इन सबके जरिए उन लोगों को भी अपना प्रणाम भेज रहा हूं। अपने घरों में बैठकर अपनी जान की खैर मनाने वाले वैसे लोग जो खुद को सामाजिक सरोकार और देश हित से जोड़कर देखते हैं, उनको इनकी तरफ भी देखना चाहिए।

सब्र की सीमा जिस दिन टूटेगी व्यवस्था में बैठे सारे जिम्मेदार नापे जाएंगे...


कोरोना डायरी 3 मई  2021 

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 रोज एक मैसेज तो ऐसा रहता ही है कि सर अब परेशान मत होना। वे नहीं रहे या नहीं रहीं। एडमिशन से लेकर ऑक्सीजन तक, आईसीयू में एडमिशन दिलवाने से लेकर ब्लड प्लाज्मा तक- कई तरह की जरुरत के साथ लोग रोज बार-बार मैसेज या कॉल करते रहते हैं। परेशान लोग, रोते-बिलखते लोग, जिंदगी की भीख मांगते लोग। सबकुछ होने के बावजूद कुछ कर पाने में लाचार लोग। कुछ नहीं होनेक कारण बस जिंदगी की खैर मनाते लोग। 135 करोड़ लोग। डर से मरे हुए लोग। रोज-रोज मरते हुए लोग।

आज शैलेंद्र का दोपहर में मैसेज आया - सर, अब छोड़ दीजिए। ही इज नो मोर। शैलेंद्र मेरे पुराने कुलीग और मित्र रजत अमरनाथ के रेफरेंस से मुझतक पहुंचे। मैसेज किया, फोन किया । कोशिश इस बात की कर रहे थे कि उनके दो करीबी ( दोनों जवान ) बच जाएं। दोनों को कई दिनों से बुखार। एक का ऑक्सीजन लेवल 60 और दूसरे का 70 आ चुका था। एडमिशन के लिये रोज की लड़ाई चल रही थी। लेकिन कहीं कोई जगह नहीं। कोई सुनवाई नहीं। मैने भी लगातार कोशिशें की लेकिन उनका भी कोई फायदा नहीं हुआ। अजीब से हालात हैं। आप मरने की हालत में हैं, अगले दो-तीन दिन में मर जाएंगे यह भी पता है लेकिन इलाज नहीं हो सकता। लीबिया-सीरिया जैसी बदइंतजामी है। शैलेंद्र जिन दो लोगों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे - उनमें से एक आज तड़प-तड़प कर मर गया। दूसरे की बारी कभी भी आ सकती है। यह भी हो सकता है कि सारा देश मर जाए। सिर्फ देश के भारी-भरकम, बड़े-बड़े नेता बचेंगे क्योंकि देश के सारे साधन-संसाधन और सुविधाओं पर उनका कब्जा है। उनके लिए सारी सहुलियतें हैं। आम नागरिक चाहे मालदार हो या गरीब, मौत के सामने निहत्था खड़ा है। बच गया तो उसकी किस्मत। मारा गया तो कोई कुसूरवार नहीं। नेता और व्यवस्था कभी दोषी नहीं होते। भगवान ना करे लेकिन आपके घर में कोई सदस्य बीमार हो जाए और आपको टेस्ट करवाना हो या फिर उसका इलाज- आपको यकीन हो जाएगा कि जिस देश में आप अपना कीमती वोट देकर सत्ता बनाते हैं, उसने आपके लिए क्या किया है!
पिछले एक साल में कोरोना से लड़ने के लिए जरुरी बंदोबस्त किये जा सकते थे। ऑक्सीजन प्लांट बिठाए जा सकते थे, ऑक्सीजन टैंकर बनाए जा सकते थे। तमाम अस्पताल बेड-ऑक्सीजन-दवा से लैस किए जा सकते थे। लेकिन नहीं हुआ। क्यों? निपट लापरवाही औऱ बेफिक्री! अब जागे हैं। लेकिन यह मान लीजिए कि जबतक चीजें पटरी पर आएंगी, हजारों-हजार घरों में मातम पसर चुका होगा। सवाल वही है - इसका दोष किसपर? केंद्र, राज्यों पर और राज्य केंद्र पर उंगली उठा रहे हैं। उधर लोग मर रहे हैं। मरते जा रहे हैं। ना आज इंतजाम है ना अगले कई दिनों तक रहने के आसार हैं। आंकड़ों और तस्वीरों का एक फरेबी खेल खेला जा रहा है। उससे तत्काल कुछ नहीं होनेवाला है। किसी एक दल को आप हत्यारा मत मानिए, सब हैं। ये एक दूसरे की गिरेबान पकड़ रहे हैं लेकिन इनको पता है कि इसी फर्जी लड़ाई से वो जनता को कंफ्यूजन में डाल सकते हैं। लोगों के क्रोध से खुद को बचा सकते हैं। आजतक कभी ऐसा लगा नहीं कि इतना बड़ा देश इस तरह अपाहिज और असहाय हो जाएगा, मगर कर दिया गया। अभी कुछ लोगों ने तड़प कर दम तोड़ा होगा, कुछ आनेवाले घंटों मे तोड़ेंगे...तोड़ते जाएंगे। इस देश में जो लोग हैं, उनकी सब्र की सीमा को कोई होगी ही! जिस दिन टूटेगी व्यवस्था में बैठे सारे जिम्मेदार नापे जाएंगे।