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मंगलवार, 11 नवंबर 2014

खयाल भी एक कविता है



तुम्हारा स्पर्श
जैसे बादल की देह में
रेशा रेशा उतरता पानी धीरे धीरे.
तुम्हारी सांस
जैसे संदल की जड़ों से
ज़मीन में फैलती खुशबू धीरे धीरे
तुम्हारी हंसी
जैसे धूप में गिरती
बारिश की बूंदे धीरे धीरे.
औऱ तुम्हारा खयाल
जैसे अभी अचानक
गोद में झड़ते गुलमोहरी पल धीरे धीरे.