यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 20 जून 2015

आधी रात


आधी रात टहलता रहता है सन्नाटा आसपास 
जैसे उफ्फ भी करो तो पूछने आ जाएगा पास - क्या हुआ?
पसरी रहती है रात अलमस्त आधी रात 
कमरे की मद्दिम रौशनी धकेले रखती है बाहर मनभर 
आधी रात सपने जोहते रहते हैं नींद की बाट 
दूर पगडंडी पर ज्यों तकता है कोई मेहमान की राह
आवाज की टोह लेनी पड़ती है कभी कभी आधी रात
अपना दरवाजा बजा या पड़ोस में कोई आया
अचकचा कर लपकता हूं जब फोन बजता है
कहीं किसी को कुछ हुआ तो नहीं आधी रात
रात भारी हो तो भोर कितनी सुस्त चलती है
महीनों की रात में पूरी होती है आधी रात
आधी रात कुछ आवारा ख्याल भी घूमते रहते हैं
चाय की ठेली पर सिगरेट सुलगाकर पूछता है कोई - अब कहां चला जाए?
आधी रात तुम्हारी सांसे डोलती रहती है कहीं आसपास
कुछ उतरता रहता है सीने में आहिस्ता आहिस्ता आधी रात