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शुक्रवार, 19 जून 2015

पहेली


आधी रात ठेला खींचता
सरपट भागता वह
थोड़ी ही देर में ओझल हो गया.
श्मशान में खड़े आदमी
या फिर बहुत डरे आदमी की तरह था वह
लेकिन बहुत बेचैन
जैसे कर्ज में डूबा आसमान ताकता किसान
नौकरी ढूंढता डिग्रीधारी नौजवान.
बस दो मिनट के लिये मोड़ पर रुका था
पहले पीछे देखा
दूर तक रोशनी के खंभे सड़क पर
फिर आगे देखा
दूर तक रोशनी के खंभे सड़क पर
उसने फिर आसमान देखा
और देर तक देखता रहा.
एक बड़ी पहेली है
आखिर वो इतनी देर तक
क्यों ताकता रहा
अमावस का खाली काला अंधा आसमान.