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शनिवार, 20 जून 2015

रात भर


रौशनी की बस्तियां अंधेरों की झीलें भागती रहीं
सफ़र में तुम्हारे साथ यादें जागती रहीं रात भर.
रात भर खिड़कियाँ शोर मचाती जगाती रहीं मुझे
तुम्हारे तकिये पर मेरी नींद बैठी रही रात भर.
भूले हुए गीतों के भटके काफिले होंगे शायद
गलियां वीरानों में राह बताती रहीं रात भर.
लो नीम की फुनगी पर चाँद फिर अटका
तेरी शैतानियाँ याद आती रहीं रात भर.
बरसों हुए गाँव से शहर आये हुए मुझको
बरसों तक कोई चोट रुलाती रही रातभर.