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शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

Poetry

Poetry


किस्त मैंने बस चाहा था और एक बार उससे फोन पर राय ली थी बस आ गई घर पर कार नई कार किस्तों में कटेंगे पैसे ब्याज दूसरों से कम हाथ मिलाने के बाद उसने गुलदस्ता पकड़ाते हुए कहा और चला गया. मैंने बस चाहा था किरानेवाला का लड़का महीने का सारा सामान रसोई में रख गया साफ-सुथरे साबुत सब छंटाक भर भी बेईमानी नहीं जाते समय लिस्ट थमा गया मैंने बस चाहा था और दरवाजे पर दूध सब्जी आ गए साठ रुपए वाला शुद्द दूध जालीदार थैलों में चमकदार आलू टमाटर खुशबूदार-ज़ायकेदार व्यंजनों वाले विज्ञापनी मसाले भी दाम चढाकर बताने से पहले बताया जाता है सब आर्गेनिक है साहब पिछले हफ्ते से ज्यादा भारी पर्ची है इसबार घर के डाइनिंग टेबल पर गुलदस्ता पड़ा है किरानेवाले की लिस्ट दूध सब्जीवाले की पर्ची भी दीवार पर सामने कलेंडर है काश! मजबूरियां महंगी नहीं होतीं और तारीखें भी किस्तों में आतीं. मित्रता सबसे बड़ी ताकत सबसे बड़ा भरोसा मुश्किल वक्त में आकर खड़ा होना और कंधे पर हाथ रखकर कहना मैं हूं ना ! कोई रिश्ता नहीं बस एक विश्वास है कि दुनिया में हर जगह हार जाऊं एक जीत के लिए तरस जाऊं तुम अपनी पूरी दुनिया तब हारने के लिए खड़ा मिलोगे हारकर जीतने का यह कैसा नाता है! इंसान हंसता एक सा है रोता भी एक सा है एक सी भूख लगती है एक सी चोट महसूस होती है रहने खाने बोलने में हज़ारों भेद हैं सबके यहां दोस्ती एक सी होती है सच कहूं तो दुनिया इसी से चलती है!

इरोम शर्मिला इंफाल के चारों ओर के पहाड़ जैसे नींद से जागे हैं आज अलसाई नदियों की बांह पकड़ किसी ने उठाया है हौले से और पहाड़ों पर चढ़ते-उतरते थके-हारे रास्तों को अचानक जल्दी आन पड़ी है शहर में दूर-दूर से लोग आए हैं देश में दूर-दूर तक खबर फैली है सोलह साल बाद उंगली पर शहद आया है एक कसम टूट रही है हारकर सोलह साल बाद. लोकटक झील के हरे गोल-गोल घेरों में देहभर पानी लिए बादलों के साथ आसमान उतरा है मछुआरों के डेरे लिए चलती-फिरती इस झील में कहीं कोई मेइती उम्मीद का गीत गा रहा है मैरी कॉम के गांव जाती सड़क पर लड़कियों का झुंड संगाई हिरणों की तरह उछलता जा रहा है धान के खेतों पर आस के डोरे टंगे हैं आंखों में आंसू उतरे हैं अपनी तरह के पहली बार. गोलियों के छर्रों पर जो छींटे सवाल बनकर रह गए संगीन की नोंक पर जो आवाज़ दब गई हलक तक आकर बूटों से कांपते रहे जो घाटी और पहाड़ इमा कैथल में जो चूड़ियां खनकने से डर गईं उन सबकी रिहाई की कोई तारीख लिखी गई है मैं मुख्यमंत्री बनना चाहती हूं इरोम ने कहा है आज.


आना

आना जैसे आती है चोरी से कोई अच्छी बात. आना जैसे आता है बादल के देह में पानी. आना जैसे आते हैं तितलियों के पंखों पर रंग. आना जैसे आता है आधी राह की चांद में आधा चांद आना जैसे आती है रास्तों पर लीक. आना जैसे आती है किनारे पर नाव . शरणार्थी आधी रात हुंकारते समंदर में घिरे सीरिया के शरणार्थियों ने सोचा होगा शाम को लौटी चिड़िया ने अपना पेड़ नहीं पाकर सोचा होगा आतंकियों के हाथों मारे जाने से ठीक पहले हजारों लोगों ने सोचा होगा कर्ज में डूबे किसान ने आत्महत्या से ऐन पहले सोचा होगा रोटी और पानी के लिए दर-दर भटकते करोड़ों लोगों ने सोचा होगा काश ! दुनिया रहने लायक हो पाती.

उफ्फ्..! जो आदमी बीवी की लाश कोसों ले गया वो अपने कंधे पर धरती ढो गया. जिस बेटे को मां की लाश गठरी बनानी पड़ी होगी उसे अपनी आत्मा कितनी बार दागनी पड़ी होगी! राह के दबंगों से डरकर जो लोग तालाब से शवयात्रा ले गए मिट्टी की हांडी में सुलगता इंकलाब भी ले गए. जो औरत प्रसव पीड़ा में अस्पताल के लिए मीलों चली होगी हर आह सरकारों के मुंह पर कालिख मली होगी.