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शुक्रवार, 19 जून 2015

लिखावट


वक्त के टुकड़ों सी पड़ी हैं
बूढी रद्दियां
एक टुकड़े पर वो दिखी है
उस धूल सने चितकबरे वक्त को
टटोल टटोल परखा
ये मेरी ही है ।
दादा के यार, गांव का शिवाला
दालान के ठहाके, मुहल्ले का सड़ा नाला
सब याद आया
स्कूल की गीली पगडंडियों से
कोई आवाज लगाया -
यार तू कितनी दूर निकल आया।