यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 31 जनवरी 2016

शनि शिंगणापुर और आधी आबादी का युद्द

धूप तीखी हो चली थी. मैंने ड्राइवर से एसी ऑन करने को कहा. दिल्ली में अब भी ठंड है लेकिन यहां आकर मौसम ही दूसरा-सा लगता है. धूप में हल्का तीखापन है. मेरी नजरें बांयी तरफ थीं. कार सरपट भाग रही थी. सड़क की दोनों तरफ पीछे भागती छोटी- छोटी पहाड़ियां औऱ उनतक पसरे हरे भरे खेत. यार, अब कितने घंटे और, मैंने ड्राइवर से पूछा. सर, बस एक घंटा- उसने मराठी लहजे में हिंदी बोली. अच्छा- मैंने धीरे से कहा. अरे, मैंने तो तुम्हारा नाम ही नहीं पूछा और ढाई-पौने तीन घंटे से हम साथ है. क्या नाम है ? मैंने बस कुछ सेकंड बाद तपाक से पूछ डाला. उसने फिर उसी लहजे में कहा- सर अन्ना. अरे वाह, तुम तो अन्ना हजारे वाले हो- मेरे कहते ही वो हंस पड़ा. अरे नहीं साहब लेकिन अन्ना के गांव आप यहीं आगे से बाएं मुड़ जाएं तो जा सकते हैं. छोड़ो, अभी उधर नहीं जाना है, ये बताओ इधर क्या खेती होती है. अन्ना ने कहा- सर गेंहू, बाजरा, टमाटर, प्याज , ईंख... अन्ना तुम गाड़ी की रफ्तार बढाओ- मैंने उसकी बात को काटते हुए थोड़ी ऊंची आवाज़ कहा. मुझे अब मेरे ही सवाल का जवाब सुनने का मन नहीं कर रहा था. ११.३० बज गए हैं और एक घंटा अभी और लगेगा. यानी १२.३० तक तो हम पहुंच पाएंगे. मैं कब शूट शुरु करुंगा और कब वापस आकर फ्लाइट पकड़ूंगा? कुछ ही सेकंड में आने-जाने का मैंने जो हिसाब लगाया उससे शायद थोड़ा चिंतित हो गया और अन्ना पर रफ्तार बढाने का दबाव इसी वजह से बनाया. मैं अपने कैमरामैन शरत बारीक के साथ पुणे से शनि शिंगणापुर के रास्ते पर था. दिल्ली से बीती रात ही पुणे पहुंच गया था ताकि सुबह ही शिंगणापुर के लिये निकल पड़ूगा. जिस होटल में ठहरा था, वहां से नाश्ता कर सुबह साढे आठ बजे के आसपास निकल गया था.
पिछले कई दिनों से शिंगणापुर में शनि के चबूतरे पर जाने को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है. जितने न्यूज चैनल हैं, सबपर रोजाना ये बहस चल रही है कि शनि की प्रतिमा तक जाने औऱ उनकी पूजा करने का अधिकार महिलाओं को क्यों नहीं. २६ जनवरी को भूमाता ब्रिगेड की महिलाओं ने पुणे से शिंगणापुर की ओर कूच किया तो देश में खलबली मच गयी. हालांकि ब्रिगेड की महिलाओं को शिंगणापुर से ७० किलोमीटर पहले सूपा गांव में ही पुलिस ने रोक लिया.  अभी थोड़ी देर पहले जब वो गांव गुजरा था तो मैंने शरत को टोकते हुए कहा कि देखो ये वही गांव है जहां तृप्ति देसाई और उनके साथ की महिलाओं को शिंगणापुर जाने से रोका गया था. याद है ना वीडियो - जमीन पर लोट-लोट महिलाएं नारा लगा रही थीं, मैंने आगे जोड़ा. आज चार रोज गुज़र गए लेकिन देश में बहस लगातार जारी है. मैंने अपने शो अर्धसत्य के लिये शिंगणापुर को इसीलिए चुना कि इस विवाद की असलियत मैं समझ पाऊं और दर्शकों को समझा पाऊं.
कार जब मंदिर के सामने रुकी तो १२ बजकर ४० मिनट हो रहे थे . बाहर निकलते ही धूप थोड़ी चुभी. मंदिर प्रशासन से पहले ही बात हो चुकी थी, सो सीधे अंदर गया.  दफ्तर में जो आदमी इंतजार कर रहा था उसने एक लड़के को बुलाया औऱ कहा कि साहब दिल्ली से आए हैं, शूटिंग का परमिशन है इसलिए शनि चबूतरे तक ले जाओ. मैं और शरत उस लड़के के पीछे हो लिए. लड़का हमें शनि चबूतरे की बाईं तरफ ले गया जिधर से सूरज था.  कैमरे के लिये भी यह हिस्सा ठीक था. चबूतरे पर स्टील की रेलिंग तो थी ही उससे करीब आठ-दस फीट के फासले पर भी स्टील का एक घेरा था . इस घेरे के बाहर दर्शन करनेवाले लाइन में लगे हुए थे. मैं जिस तरफ था यानी शनि की मूर्ति के लिहाज से चबूतरे की बायीं तरफ, उधर स्टील के घेरे की सीध में दो बड़ी- बड़ी ट्रे रखी थीं, जिनके ऊपर जालियां लगी थीं. उन ट्रे से स्टील की मोटी पाइप नीचे जा रही थी. जो लोग दर्शन करने आए थे वे सामने से आ रहे थे, ट्रे के ऊपर सरसों का तेल डाल रहे थे, सामने शनि की विग्रह मूर्ति को देख रहे थे और चबूतरे की तरफ आगे जाकर फूल और बाकी पूजा सामग्री चढा रहे थे. कतार में पुरुष और महिलाएं दोनों थे. जो लड़का मुझे लेकर गया था उससे मैंने पूछा- भाई ये ट्रे में तेल क्यों चढाया जा रहा है. उसने कहा कि सर पहले तो चबूतरे तक लोग जाते थे लेकिन भीड़ बहुत होती थी तो फिर चबूतरे पर जाना रोक दिया गया और यहीं से दर्शन की व्यवस्था कर दी गई. तभी ट्रे यहां लगाई गई . इसी में लोग तेल डालते हैं और आप नीचे ट्रे से लगी हुई जो पाइप देख रहे हैं वो जमीन के नीचे बने एक टैंक को जाती है. टैंक में तेल जमा होता रहता है और वहां से मोटर चलाकर पाइप के जरिए शनि के ऊपर लगे कमंडल तक पहुंचाया जाता है. अभी जो तेल शनि की शिला पर गिर रहा है वो उसी टैंक से जा रहा है. इसी दौरान मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े योगेश वानकर आ गए और उन्होंने मेरे  सवालों का जवाब देने का जिम्मा संभाल लिया. योगेश के मुताबिक सारा मामला भूमाता ट्रस्ट और उसकी अगुआ तृप्ति देसाई के पब्लिसिटी स्टंट का नतीजा है. पांच साल से चबूतरे पर पुरुष और स्त्री कोई नहीं जाता. सब यहीं से दर्शन करते हैं. बस, शाम में पुजारी अभिषेक के लिये चबूतरे पर चढते हैं. इस मामले को उनलोगों ने इतना बड़ा बवाल बना दिया है कि लगता है जैसे महिलाओं का यहां प्रवेश तक वर्जित है. लेकिन पिछले साल २९ नवंबर को जब एक महिला चबूतरे पर चढ गई तो आपने मूर्ति का शुद्दिकरण तो करवाया ना. भूमाता ब्रिगेड इसी को तो महिलाओं का अपमान मानकर सिर्फ पुरुष के ही चबूतरे पर जाने की परंपरा को तोड़ने की बात कह रहा है- मैंने तपाक से सवाल दागा. योगेश थोड़ी देर के लिये सकपका से गए. ३०-३२ साल की उम्र होगी, लंबा कद है और बात को घुमा फिराकर परंपरा पर ला रहे थे. कुछ सेकंड थमकर बोले - सर ये भी गलत है. कोई शुद्दिकरण नहीं हुआ. शाम को अभिषेक होता है और अभिषेक ही हुआ. लेकिन तृप्ति उसको शुद्दिकरण कहकर लोगों को गुमराह कर रही हैं. मेरी जब तृप्ति से बात हुई थी तो उन्होंने यही कहा था कि २९ नवंबर की घटना महिलाओं का अपमान थी और उसका एक ही रास्ता है कि शिंगणापुर की इस भेदभाव वाली परंपरा को खत्म किया जाए. पुलिस ने हमें एक बार तो रोक लिया लेकिन ऐसा नहीं है कि हम चुप बैठेंगे. तृप्ति, पुणे सतारा रोड पर बालाजी नगर के पास धनकावड़ी में रहती हैं. मैंने उनसे पूछा था कि आप ये पूरा बखेड़ा अपनी पब्लिसिटी के लिए कर रही हैं, ऐसा आप पर आरोप लग रहा है तो तृप्ति ने कहा था कि नहीं ऐसा नहीं है. मेरा संगठन भूमाता बिग्रेड २०१० से काम कर रहा है और हमने अन्ना हजारे से लेकर बाबा रामदेव तक के आंदोलनों में हाथ बंटाया है. महिलाओं के साथ जहां भी अत्याचार और गैर-बराबरी होते हैं , हम आवाज उठाते हैं. शिंगणापुर में भी गलत परंपरा को खत्म करने के लिये हम आंदोलन पर उतरे. तृप्ति की बात का ख्याल मुझे यहां पूरी तरह से था और सामने मुझे जो दिख रहा था, दोनों को जोड़कर मेरे लिए ये समझना मुश्किल हो रहा था कि जिस बात को लेकर समूचे देश में महिला अधिकार और सम्मान का अलख जगा हुआ है, वो क्या सचमुच इतना बड़ा है! महिला और पुरुष कतार में तेल डालते, शनि की मूर्ति को प्रणाम करते आगे निकलते जा रहे थे. किसी के मन में गैर बराबरी का भाव आता होगा ये लगता नहीं है. पिछले पांच साल से तो ऐसा ही इंतजाम है.  हां ,अभिषेक करनेवाला पुजारी पुरुष ही होगा ये परंपरा है, लेकिन वो सिर्फ शाम में अभिषेक भर के लिये चबूतरे पर जाता है और इसतरह के भेद का भाव भी शायद ही किसी के मन में यूं आया होगा जैसा इनदिनों है. फिर भी मुद्दा तो है. लिहाजा मैंने योगेश से बतौर सलाह कहा कि क्यों नहीं आप ऐसा कर दे रहे हैं कि पुरुष पुजारी के साथ एक महिला पुजारी को भी शामिल कर उसे अभिषेक के लिये चबूतरे पर भेज देते हैं ताकि सारा बवाल ही खत्म हो जाए. मेरा इतना कहना था कि योगेश थोड़े तन और तमतमा से गए. देखिए, जो रूढि और परंपरा है उसको हम नहीं तोड़ सकते. महिला नहीं जाती है शनिदेव के पास तो नहीं जाएगी. इसके बारे में आप धर्मशास्त्र के जानकारों से राय ले सकते हैं.
इस देश के जाने माने आध्यात्म गुरु पवन सिन्हा के मुताबिक धर्मशास्त्रों में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि शनि के पास स्त्रियों का जाना धर्म-विरुद्द है या फिर पाप है. श्रग्वेद में ऐसे ४१४ श्रषियों का उल्लेख आता है जिन्होंने श्रचाओं की रचना की और इनमें ३० महिलाएं हैं. युजुर्वेद कहता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र: देवता: . उपनिषदों तक महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी लेकिन स्मृतियों के काल में महिलाओं पर पाबंदियां बढने लगीं. और ऐसा समाज में हाशिए पर खड़ी आबादी के साथ भी हुआ. पवन जी के मुताबिक अव्वल तो शनि की स्थिति देवता की नहीं बल्कि ग्रह की है, लेकिन हिंदू परंपरा में ग्रहों का संबोधन भी सम्मानजनक रहा है. इसलिए शनि या वृहस्पति को साधारण आदमी देवता ही मान लेता है. सच्चाई ये है कि पूजा को जो विधान विष्णु के लिये होगा वो शनि के लिये नहीं हो सकता. शनि की आपकी कुंडली में कैसी स्थिति है इसपर उसका प्रभाव निर्भर करता है. कहते हैं कि कोबरा का काटा और शनि का मारा पानी तक नहीं मंाग पाता. शनि की दृष्टि जब खराब थी तो गणेश का सिर शिव ने काट डाला, राम को वनवास हो गया, रावण जैसे महापंडित का संहार हो गया, पांडवों को अज्ञातवास में दर दर भटकना पड़ा, राजा हरिश्चंद्र को दुर्दिन देखने पड़े और राजा विक्रमादित्य को कई तरह के कष्ट उठाने पड़े. पवन सिन्हा इन उदाहरणों को रखने के साथ साथ ये सावधानी बरतने को भी कहते हैं कि इसका मतलब ये नहीं है कि शनि के इसतरह के कुप्रभाव से बचने के लिये आपको धाम-धाम भटकें. उसके कुछ कारगर उपाय बताए गए हैं. अगर उनको आप अपना लें तो संकट से बचना आसान हो जाएगा. लेकिन जिसतरह से शनि का प्रभाव हर जातक यानी स्त्र- पुरुष दोनों पर पड़ता है, वैसे ही शनि की पूजा और उनकी मूर्ति पर तेल-फूल चढाने का अधिकार दोनों के पास होना चाहिए. पवन सिन्हा की राय जैसी ही राय देश के प्रतिष्ठित ज्योतिष और अंकशास्त्री अनुपम कपिल रखते हैं. वे कहते हैं कि शनि ग्रह है और उसका प्रभाव व्यक्ति पर तब पड़ता है जब उसकी दशा शुरु होती है. शनि को न्याय का देवता मानते हैं , इसलिए वो उन्हीं लोगों के लिये कष्टकर सिद्द होगा जिनके कर्म अच्छे नहीं हैं. दरअसल शनि की स्थिति व्यक्ति पर बुरा ना करने का डर और अच्छा करने की नैतिकता पैदा करनेवाले ग्रह की है. शनि से महिलाओं को दूर रहना चाहिए ऐसा कोई नियम कहीं नहीं लिखा है. यह एक रूढि है और समय के साथ इसका खत्म होना अच्छी बात है. अनुपम कपिल अपनी इन बातों के साथ कुछ सवाल भी रखते हैं.  वे कहते हैं कि आज से १५-१६ साल पहले जब मैं शिंगणापुर जाता था तो वहां धूल उड़ती थी. सबकुछ उजड़ा हुआ सा लगता था और आज देखिए तो करोड़ों की कमाई हो रही है. सिर्फ तेल का कारोबार ही ऐसा है कि लोग दिनभर में पीपा का पीपा सरसों का तेल चढा देते हैं और वही तेल फिर निकालकर बाजार में उतार दिया जाता है. इसके खिलाफ कोई आंदोलन नहीं होता. देश के मंदिरों में गिरोहबंदी और लूट है इसको लेकर आवाज नहीं उठती. लेकिन शिंगणापुर में महिला शनि के चबूतरे तक जाए इसके लिये समूचे देश को आंदोलित कर दिया गया है. अपनी बात में थोड़ा बदलाव कर अनुपम कहते हैं कि आप ही बताइए कि क्या इस देश को पता नहीं है कि शिंगणापुर में असली मामला क्या है? चबूतरे पर चढने की लड़ाई को लेकर देश के सभी टीवी चैनलों पर घंटो बहस होगी और अखबारों के पन्ने भर जाएंगे, लेकिन किसानों की रोज-रोज की मौत पर चुप्पी रहेगी. हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि पत्नी की उम्र पति की उम्र की एक तिहाई होनी चाहिए. क्या आप ये चाहते हैं कि आठ साल की बच्ची का विवाह २४ साल के आदमी से कर दिया जाए. पिता अगर बेटी के पहली बार रजस्वला होने से पहले ही उसका विवाह नहीं करता तो वो पाप का भागी होगा, यह भी हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं, क्या बेटियों का विवाह १४-१५ साल पर कर दिया जाए. समय के साथ ऐसी अंधेरगर्दी खत्म होनी चाहिए.  अगर शिंगणापुर में महिलाओं को लगता है कि ये अपाहिज परंपरा नहीं रहे तो नहीं रहनी चाहिए. मेरा एतराज बस इतना है कि इतने बड़े देश में मुद्दे इतने जरुरी और बड़े हैं कि शिंगणापुर का सवाल बहुत छोटा दिखता है. लेकिन इसी पर हम समय खराब कर रहे हैं. इतना कहते-कहते अनुपम का चेहरा लाल हो गया था, मैंने महसूस किया.  पुणे एयरपोर्ट से जैसे ही बाहर निकला था अनुपम कपिल बाहर मेरा इतंजार करते हुए दिखे . मैं उन्ही की गाड़ी में बैठा और होटल तक गया. दस साल पुरानी पहचान है और अब दोस्ती गहरी हो चुकी है. शिंगणापुर निकलने से पहले मेरी अनुपम से लंंबी बात हुई और मैंने उनका इंटरव्यू भी किया. ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली से निकलने से पहले पवन सिन्हा से शनि और हिंदू धर्मशास्त्रों में स्त्रियों की स्थिति पर बात की थी. इन दोनों की बातों से जो सवाल शिंगणापुर शनि मंदिर प्रशासन के ऊपर उठ रहे थे, उनको भी मैंने शनिधाम से जुड़े लोगों के सामने रखा. इसीलिए योगेश ने जब ये कहा कि आप धर्माचार्यों से पूछिए कि महिलाओं को शनि की मूर्ति को स्पर्श करना चाहिए की नहीं तो मैंने उनसे एक ही बात कही. आप सिर्फ एक धर्मग्रंथ बता दीजिए जिसमें महिलाओं को शनि से दूर रहने की बात कही गई है. योगेश के पास कोई जवाब नहीं था. यही प्रश्न मैंने शनिधाम के पुजारी अशोक देवा के सामने भी रखा, लेकिन उनके पास भी रटा-रटाया जवाब था- ये परंपरा है और वो भी चार सौ साल पुरानी, नहीं बदल सकती. हम कोई अकेले फैसला थोड़े कर सकते हैं. पूरा गांव है, शनि की कृपा रहती है यहां. आपके कहने से हम कोई फैसला ले लें और फिर हमें शनि का कोप भोगना पड़े , ऐसा हो नहीं सकता. पुजारी अशोक देवा ये बात कहते-कहते गांव की उस परंपरा का भी हवाला देने लगे जो हिंदुस्तान में इकलौती और आश्चर्यजनक है. अगर शनि यहां सबकुछ नहीं देख रहे होते तो सैकड़ों साल से शिंगणापुर गांव के घरों में दरवाजे नहीं हैं और चोरी नहीं होती.  अगर कोई कुछ चुरा भी ले तो गांव के सीवान से बाहर सलामत नहीं जा सकता. क्या ये सब ऐसे ही है. अशोक देवा मुझसे ही सवाल करने लगे थे. मुझे थोड़ी हंसी भी आई . यह बात ठीक है कि शिंगणापुर में किसी भी घर में , दवाखाने में , दुकान में मैंने दरवाजा नहीं देखा लेकिन इस परंपरा भर से इस औरतों को शनि से दूर रखने की प्रथा को चलते रहने की अनुमति मिल जाती है?  इस तरह के भय ने समाज में एक बड़े तबके को सहमति में हाथ बांधे , पीढियों दुत्कार खाते और अपने हालात के लिये अपनी पैदाइश को कोसते रखा है . शिंगणापुर में औरतों के साथ भी ऐसा ही रहा है. यह ठीक है कि लगता है कि मामला पैदा किया गया और उसपर बवाल खड़ा किया गया लेकिन सवाल तो बराबरी का ही है. समाज में समानता के हक में और भेदभाव के खिलाफ जैसी बाकी लड़ाइयां या मुद्दे हैं , शिंगणापुर में महिलाओं के साथ गैर बराबरी भी वैसा ही मुद्दा है. मंदिर के प्रांगण से मैं यही राय लेकर निकल रहा था,. लगभग चार बजने को थे. दिल्ली वापसी की फ्लाइट के लिये अभी ६ घंटे बचे थे और पुणे लौटने में चार साढे चार घंटे लगने थे. कार में बैठते समय मैंने शरत से कहा यार रास्ते में गन्ने का रस निकालनेवाले कोल्हू लगे थे, गाड़ी रोक लेना. दो चार ग्लास गटक कर निकलेंगे.