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रविवार, 19 नवंबर 2017

ग़ज़ल १



ज़िद ही है तो कुछ यूं करो
धूप को मुटठी में बांधा करो
भूख लगकर मिटती भी तो है
जीने के लिए उसे मारा करो
इधर तुम और वो उस किनारे
इक हवा की नाव चलाया करो
दाद देनेवाले हैं बहुत पर कभी
पीठ पीछे खड़ा हो जाया करो
उसकी चूड़ियों में बनारस तो है
तुम मणिकर्णिका आ जाया करो