यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 12 मई 2021

सब्र की सीमा जिस दिन टूटेगी व्यवस्था में बैठे सारे जिम्मेदार नापे जाएंगे...


कोरोना डायरी 3 मई  2021 

------------------------

 रोज एक मैसेज तो ऐसा रहता ही है कि सर अब परेशान मत होना। वे नहीं रहे या नहीं रहीं। एडमिशन से लेकर ऑक्सीजन तक, आईसीयू में एडमिशन दिलवाने से लेकर ब्लड प्लाज्मा तक- कई तरह की जरुरत के साथ लोग रोज बार-बार मैसेज या कॉल करते रहते हैं। परेशान लोग, रोते-बिलखते लोग, जिंदगी की भीख मांगते लोग। सबकुछ होने के बावजूद कुछ कर पाने में लाचार लोग। कुछ नहीं होनेक कारण बस जिंदगी की खैर मनाते लोग। 135 करोड़ लोग। डर से मरे हुए लोग। रोज-रोज मरते हुए लोग।

आज शैलेंद्र का दोपहर में मैसेज आया - सर, अब छोड़ दीजिए। ही इज नो मोर। शैलेंद्र मेरे पुराने कुलीग और मित्र रजत अमरनाथ के रेफरेंस से मुझतक पहुंचे। मैसेज किया, फोन किया । कोशिश इस बात की कर रहे थे कि उनके दो करीबी ( दोनों जवान ) बच जाएं। दोनों को कई दिनों से बुखार। एक का ऑक्सीजन लेवल 60 और दूसरे का 70 आ चुका था। एडमिशन के लिये रोज की लड़ाई चल रही थी। लेकिन कहीं कोई जगह नहीं। कोई सुनवाई नहीं। मैने भी लगातार कोशिशें की लेकिन उनका भी कोई फायदा नहीं हुआ। अजीब से हालात हैं। आप मरने की हालत में हैं, अगले दो-तीन दिन में मर जाएंगे यह भी पता है लेकिन इलाज नहीं हो सकता। लीबिया-सीरिया जैसी बदइंतजामी है। शैलेंद्र जिन दो लोगों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे - उनमें से एक आज तड़प-तड़प कर मर गया। दूसरे की बारी कभी भी आ सकती है। यह भी हो सकता है कि सारा देश मर जाए। सिर्फ देश के भारी-भरकम, बड़े-बड़े नेता बचेंगे क्योंकि देश के सारे साधन-संसाधन और सुविधाओं पर उनका कब्जा है। उनके लिए सारी सहुलियतें हैं। आम नागरिक चाहे मालदार हो या गरीब, मौत के सामने निहत्था खड़ा है। बच गया तो उसकी किस्मत। मारा गया तो कोई कुसूरवार नहीं। नेता और व्यवस्था कभी दोषी नहीं होते। भगवान ना करे लेकिन आपके घर में कोई सदस्य बीमार हो जाए और आपको टेस्ट करवाना हो या फिर उसका इलाज- आपको यकीन हो जाएगा कि जिस देश में आप अपना कीमती वोट देकर सत्ता बनाते हैं, उसने आपके लिए क्या किया है!
पिछले एक साल में कोरोना से लड़ने के लिए जरुरी बंदोबस्त किये जा सकते थे। ऑक्सीजन प्लांट बिठाए जा सकते थे, ऑक्सीजन टैंकर बनाए जा सकते थे। तमाम अस्पताल बेड-ऑक्सीजन-दवा से लैस किए जा सकते थे। लेकिन नहीं हुआ। क्यों? निपट लापरवाही औऱ बेफिक्री! अब जागे हैं। लेकिन यह मान लीजिए कि जबतक चीजें पटरी पर आएंगी, हजारों-हजार घरों में मातम पसर चुका होगा। सवाल वही है - इसका दोष किसपर? केंद्र, राज्यों पर और राज्य केंद्र पर उंगली उठा रहे हैं। उधर लोग मर रहे हैं। मरते जा रहे हैं। ना आज इंतजाम है ना अगले कई दिनों तक रहने के आसार हैं। आंकड़ों और तस्वीरों का एक फरेबी खेल खेला जा रहा है। उससे तत्काल कुछ नहीं होनेवाला है। किसी एक दल को आप हत्यारा मत मानिए, सब हैं। ये एक दूसरे की गिरेबान पकड़ रहे हैं लेकिन इनको पता है कि इसी फर्जी लड़ाई से वो जनता को कंफ्यूजन में डाल सकते हैं। लोगों के क्रोध से खुद को बचा सकते हैं। आजतक कभी ऐसा लगा नहीं कि इतना बड़ा देश इस तरह अपाहिज और असहाय हो जाएगा, मगर कर दिया गया। अभी कुछ लोगों ने तड़प कर दम तोड़ा होगा, कुछ आनेवाले घंटों मे तोड़ेंगे...तोड़ते जाएंगे। इस देश में जो लोग हैं, उनकी सब्र की सीमा को कोई होगी ही! जिस दिन टूटेगी व्यवस्था में बैठे सारे जिम्मेदार नापे जाएंगे।