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बुधवार, 12 मई 2021

ऐसे पत्रकारों पर नाज़ करने का मन करता है

कोरोना डायरी 25 अप्रैल 2021 

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पिछले बीस-बाइस वर्षों की पत्रकारिता में बड़े बड़े आतंकी हमले देखे, प्राकृतिक आपदाएं देखीं लेकिन इतने लंबे समय तक, इतने व्यापक स्तर पर, इतनी विनाशकारी और इतनी भयावह त्रासदी नहीं देखी। दुनिया घुटनों के बल है, इंसान हर पल मौत के साये में है, हर समय लोगों की जान जा रही है, सारा विज्ञान, शोध-चिकित्सा के सारे संसाधन आश्चर्यजनक तरीके से नाकाफी पड़ रहे हैं। सत्ता-व्यवस्था के सारे उपाय-उपक्रम नाकाम साबित हो रहे हैं। स्वयंभू शक्तिशाली देशों के अस्थि-पंजर ढीले हो चुके हैं। अर्थव्यवस्था अपाहिज हो चुकी है और समूची पृथ्वी पिछले एक साल से कोविड-19 के शिकंजे में छटपटा रही है।
आज की तारीख में दुनिया भर में कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा 14 करोड़ 60 लाख पार कर चुका है। 30 लाख 70 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है। भारत में पिछले 24 घंटो में ही लगभग साढे तीन लाख नए केस सामने आए हैं और 2600 से ज्यादा लोगों की जान गई है। अगर अबतक के नुकसान की बात करें तो लगभग एक करोड़ 39 लाख लोग भारत में संक्रमित हुए हैं और करीब एक लाख नब्बे हजार लोगों की मौत हुई है।
हालत ये है कि देश के तमाम राज्यों में बीमार लोगों का इलाज करने के लिए ऑक्सीजन नहीं है। ऑक्सीजन की कमी के चलते दिल्ली के एक बड़े अस्पताल जयपुर गोल्डेन में 25 लोगों की जान चली गई। समूचे एनसीआर में हाहाकार है। अस्पताल प्रशासन घंटे गिनवा रहा है। कहीं एक घंटे की ऑक्सीजन बची है। कहीं चार घंटे की। कहीं खत्म हो चुकी है। पिछले दो दिनों से तमाम अस्पतालों ने लोगों को भर्ती करना बंद कर दिया है क्योंकि ऑक्सीजन नहीं है। ज्यादातर लोग जो कोविड की चपेट में हैं, उनका ऑक्सीजन लेवल नीचे जा रहा है औऱ एक सीमा के बाद उनका अस्पताल में दाखिल होना जरुरी है। लेकिन अस्पतालों ने दरवाजे बंद कर दिए हैं। यह स्थिति पूरे देश में है। इसको आप क्या कहेंगे ?जबकि ऐसी आशंका पहले से ही थी कि कोरोना की दूसरी वेब ज्यादा खतरनाक और जानलेवा होगी। इंतजाम नहीं किए गए।
ऐसे में जहां कहीं भी हाथ पैर जोड़कर, व्यवस्था बनाकर, ना वाली स्थिति के बीच ही थोड़ी गुंजाइश निकालकर जितने भी लोगों का इलाज करवाया जा सकता है, कुछ लोग इस सेवा में लगे हैं। ये वैसे लोग है जिन्होंने इंसानियत और देश के मर्म को अपने अंदर बचाए रखा है। मैं ऐसे ही लोगों को जोड़ने का मंच बन चुका हूं।
कितनी कहानियां सुनाऊं! हर रोज ऐसी 50 घटनाएं होती हैं जिनको इंसान ताउम्र नहीं भूल सकता। ये उनलोगों से जुड़ी हैं जो जीवन बचाने के लिए चारों ओर भागते हैं, हर दरवाजा खटखटाते हैं औऱ आखिरकार कामयाब होते हैं। वे जीवनदाता हैं।
श्रीपाल शक्तावत, इस देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों में गिने जाते हैं। राजस्थान में उनकी खासी इज्जत है। कल रात करीब 10 बजे मेरे एक सहयोगी का मैसेज आया - सर जयपुर में एक पत्रकार हैं अफजल किरमानी, उनकी हालत नाजुक है। ऑक्सीजल लेवल 50 चला गया है। जल्दी से आईसीयू चाहिए। मैंने अफजल के लिए ट्वीट किया और एफबी पोस्ट भी। इसके तुरंत बाद फोन उठाया- वो सारे डिटेल्स जो मैंने पोस्ट किए थे, श्रीपाल जी को व्हाट्सैप मैसेज के जरिए भेजे । इसके बाद उनको व्वॉयस मैसेज किया – श्रीपाल जी, इस आदमी की जान हर कीमत पर बचनी चाहिए। आप अपने सारे घोड़े खोल दीजिए। इसके बाद श्रीपाल जी लग गए। अपने मित्रों को भी लगाया और सीएमओ से भी गुजारिश की। आखिरकार अफजल किरमानी को आईसीयू बेड मिल गया। सुबह सुबह श्रीपाल जी ने मुझे मैसेज भेजकर इत्तला कर दी। श्रीपाल जी ने दिन में फेसबुक पर एक पोस्ट भी डाली जिसमें जो उन्होंने जो लिखा उसका एक अंश मैं हू-ब-हू यहाँ रख रहा हूं ताकि उनकी संजीदगी का अंदाजा हो सके।
“सन्देश आया तब अफ़ज़ल का ऑक्सीजन लेवल 51 था और अस्पताल मिल नहीं रहा था । सीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी समेत कई मित्रों से गुजारिश की । व्यवस्था हुई तब तक ऑक्सीजन लेवल 40 तक चला गया । अब अफ़ज़ल अस्पताल में है और ऑक्सीजन सपोर्ट पर ज़िन्दगी की जंग लड़ रहा है । राणा यशवंत जी को उसकी खैरियत और अस्पताल/ऑक्सीजन के इंतजाम का जवाबी सन्देश भेजा तब जाकर सुकून मिला।”
कल जब अफजल अपनी जिंदगी जिएंगे और उनकी मुलाकात जब भी श्रीपाल शक्तावत से होगी तो उनके अंदर अफजल को खुदा दिखाई देगा।
ऐसे खुदा मैं रोज देख रहा हूं। बीती रात ही फेसबुक मैसेंजर पर एक महिला लगातार मैसेज कर रही थीं। चूंकि मैसेज बेहिसाब आ रहे हैं तो मैं जरुरी केस उठाने के लिए सरसरी निगाह सबपर डालता जाता हूं। उनका मैसेज बार बार ऊपर आ जाता था क्योंकि वे भेजे जा रही थीं। उनका नाम है गुप्ता रिखी। 70 साल के ससुर का ऑक्सीजन लेवल 65 के आसपास था। उनको ऑक्सीजन सिलेंडर या फिर ऑक्सीजन बेड की सख्त जरुरत थी। हालत लगातार बिगड़ रही थी औऱ मुझे जवाब देने में देरी हो रही थी तो उन्होंने मैसेंजर कॉल किया। मैंने कहा – समय दीजिए, कुछ करता हूं। मैंने फेसबुक पर पोस्ट डाली, ट्वीट किया और उस इलाके में मेरे एक दो जानकार थे, उनको फोन किया। बहुत देर की कोशिश के बाद भी जब कुछ नहीं हुआ तो मैंने दोबारा रीपोस्ट और रीट्वीट किया। इसे एबीपी में एंकर आदर्श झा ने पढ़ा और फिर मुझे फोन किया। आदर्श ने कहा कि सर वो आपका जो उत्तमनगर वाला केस है, उसके बारे में मैने आम आदमी पार्टी के विधायक संजीव झा से बात की है। वे आपके ट्वीटर हैंडल को फ़ॉलो भी कर रहे हैं। कहा है काम हो जाएगा। आदर्श उन पत्रकारों में हैं जो लखनऊ से लेकर नोएडा-दिल्ली तक लोगों की मदद में आजकल लगे रहते हैं। मैंने संजीव झा को मैसेज किया। कहा आपसे मदद की उम्मीद है। उन्होंने जवाब भेजा - आप निश्चिंत रहिए, काम होगा। रात 10 बजे के आसपास मुनिरका से सिलेंडर दिलवाया गया। गुप्ता रिखी ने लंबा चौड़ा धन्यवाद लिखा और यह भी बताया कि वो डीडी में काम करती हैं। मैंने जवाब दिया- आप सब ठीक रहें। मेरी शुभकामना।
कल ही वरिष्ठ टीवी पत्रकार रॉय तपन भारती का मैसेज आया और उसके साथा आधार कार्ड की फोटो भी। लिखा था-
अभिनंदन
मिश्रा नौजवान पत्रकार हैं। संडे गार्डियन, लंदन के यहां ब्यूरो चीफ है। मानेसर में रहते हैं। हालत लगातार खराब होती जा रही है, ऑक्सीजन लेवल 80 तक आ गया है। किसी अस्पताल में एडमिशन नहीं कराया गया तो जान का खतरा हो सकता है। पढ़ने के बाद मैंने पोस्ट डाली और फिर गुड़गांव-मानेसर के अपने मित्रों को सक्रिय किया। घंटो की जद्दोजह के बाद अभिनंदन को अस्पताल मिल गया। तपन भारती जी का फेसबुक पर ही जवाब आया – “ राणा य़शवंत जी, आपके और आपके साथियों के कारण अभिनंदन को गुड़गांव के अस्पताल में बेड मिल गया। सुधार हो रहा है। कुछ घंटो के बाद मेरे ट्वीटर हैडल पर जब अभिनंदन का ट्वीट आया तो रोम-रोम सिहर गया। “ राणा जी बहुत धन्यवाद। फॉरईवर इन्डेब्टेड। मैंने जवाब दियाः आप बस ठीक हो जाओ। मेरी बहुत सारी शुभकामानाएं। अभिनंदन की हालत आज और बेहतर है।
टीवी पत्रकार विद्युत प्रकाश कोरोना पीड़ित होकर पटना के एक अस्पताल मे भर्ती है। मेरे पास मैसेज आया- विदुयुत प्रकाश की हालत बहुत खराब है। उनको मदद की जरुरत है। विद्युत मेरे साथ इंडिया न्यूज में काम कर चुके हैं। मैंने जो जानाकारी आई थी, उसके आधार पर फेसबुक पोस्ट डाली और ट्वीट किया। इसके बाद लगे हाथ प्रभाकर को फोन लगाया। सुनो, विद्युत कंकड़बाग में कोई प्रयास अस्पताल है उसमें एडमिट हैं। ऑक्सीजन लेवल बहुत नीचे है। उसके बारे में पता करो औऱ जो भी मदद है करवाओ। प्रभाकर का जवाब जैसा अक्सर होता है – जी भैया। थोड़ी देर बाद फोन आया- भैया अब वे ठीक हैं। वैसे वह अस्पताल ठीक है औऱ मैने भी बात कर ली है। इसलिए अब परेशान होने की जरुरत नहीं है। वे लोग पूरा ख्याल रखेंगे। यह बताने के बाद उसने बताया कि मैं सपरिवार कोरोना की चपेट में हूँ। घर का कोई सदस्य नहीं है जो बचा हो। मैंने कहा तो पहले क्यों नहीं बताए।मैं थोड़ा दुख़ी हुआ कि बीमार आदमी को ही मैंने काम पकड़ा दिया। बोला नहीं भैया घर बैठे-बैठे ये तो कर ही सकता था। प्रभाकर टीवी-18 के ब्यरो चीफ हैं औऱ पटना के अच्छे टीवी पत्रकारों में गिने जाते हैं।
विपिन चौबे, टीवी-9 भारतवर्ष के पत्रकार हैं। वे इंडिया न्यूज के लखनऊ ब्यूरो में भी काम कर चुके हैं। तेज़तर्रार जर्नलिस्ट हैं। उनका मैसेज आया। थोड़ी देर एक और आया। शायद इस खातिर की मैं उसको गंभीरता से लूं। लखनऊ में ४१ साल के गोविंद तिवारी एक अस्पताल में भर्ती थे। उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था। अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं थी। इसलिए कहीं और ऑक्सीजन बेड की जरुरत थी। आर्थिक कमोजरी के चलते वे पैसे के बल पर कोई इंतजाम भी नहीं कर सकते थे। इसलिए उनको मददगारों से ही उम्मीद थी। मैंने इस बारे में पोस्ट और ट्वीट दोनों करने के बाद लखनऊ में दो लोगों से निवेदन भी किया। दोनों ने कहा सर कुछ समय दीजिए, कोशिश करते हैं। लेकिन इससे पहले कि कोई इंतजाम हो पाता हैं, कोरोना ने उनकी सांसे निचोड़ दीं। इस देश में गरीब आदमी बच्चों की पढाई और परिवार की दवाई के लिए संरकारी व्यवस्था पर निर्भर रहता है। इसलिए उनका बहुत मजबूत होना बेहद जरुरी है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि दोनों खस्ताहाल हैं।
शाम को किसी ने मैसेज भेजा कि सर अंकुर विजयवर्गीय की तबीयत बिगड़ गई है। अस्पताल नहीं मिल रहा है। उनके लिए कुछ कीजिए। मैंने पोस्ट डाली - अंकुर विजयवर्गीय छोटे भाई की तरह हैं। पत्रकारिता पढाते हैं। उनकी हालत बहुत खराब है। मुझे यह सूचना अभी मिली है। हर कीमत पर अंकुर को मदद मिलनी चाहिए। मेरे नोएडा और ग्रेटर नोए़डा के साथी अंकुर का एडमिशन जरुर करवाएं। इसके तुरंत बाद पंकज द्विवेदी ने फेसबुक पोस्ट पर कॉमेंट किया - सर अंकुर को शारदा अस्पताल नोएडा में बेड मिल गया है।
ऐसी कहानियों का सिलसिला-सा है। साधन-संसाधन और व्यवस्था के नाम पर चित्त पड़े इस देश में जीवन बचाने का उद्यम करनेवाले लोगों में मुझे ईश्वर दिखता है। ज्यादातर काम सिर्फ पोस्ट और ट्वीट के जरिए हो जाता है। लोग स्वत: जिम्मदारी उठाते हैं, इलाज का इंतजाम करवाते हैं औऱ फिर मुझे बताते हैं कि हो गया। कुछ मामलों में फ़ोन करके दबाव बनाता हूँ कि आप काम पूरा करो। सबसे बड़ा सच ये है कि अधिकतर मामलों में बचाने की कोशिश करनेवाला उस आदमी को जानता भी नहीं, जिसके लिए वह दूसरों के सामने हाथ तक जोड़ता है। अपने स्व और स्वार्थ से बाहर निकलकर पर औऱ परोपकार के लिए ऐसा पराक्रम देवता ही करता होगा।
दिनभर छोटी छोटी जानकारियां जो किसी के काम आ सकती हैं लोग भेजते रहते हैं। एक फेसबुक फ्रेंड हैं मेरी आरुषि चौहान। आज उन्होंने एक लिंक भेजा जिसके जरिए आप देशभर के अस्पतालों में बेड और दूसरी जरुरी सुविधाओं के बारे मे जान सकते हैं। वे दिनभर कुछ ना कुछ ढूँढकर मुझे भेजती रहती हैं। क्या स्वार्थ है उनका? बस यही कि किसी का भला हो जाए।
ज्योति सिंह भेज रही हैं कि पटना में किसी व्यक्ति को ब्लड और ऑक्सीजन की जरुरत हो तो फलां नंबर पर कॉल करें। मनोज खंडेलवाल दिल्ली-एनसीआर में ऑक्सीजन बेड वाले अस्पतालों की सूची दे रहे हैं जहां बेड खाली हैं। टीवी पत्रकार ताबिश रज़ा नोएडा ग्रेटर नोएडा के तमाम अस्पातालों में पूछताछ के लिए किससे और किस नंबर पर बात करें इसकी लिस्ट दे रहे है। धर्मेंद्र राजपूत फेसबुक मैसेंजर पर लिखते हैं- सर किसी को बचाने में आर्थिक मदद चाहिए तो बताइएगा। बीस-तीस हजार तुरंत करवा दूंगा। अगर बल्ड प्लाज्मा की आवश्यकता हो तब भी बोलिएगा। मेरे गाजियाबाद के रिपोर्टर जतिन गोस्वामी ग्रेटर नोएडा का एक वीडियो दे रहे हैं जिसमें मेडिकल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर कर रहे हैं कि मरीज मेरे यहां आएं यहां कोविड के इलाज की बेहतर व्यवस्था है और एक्सपर्ट डॉक्टर हैं। कहते हैं सर मैंने ये वीडियो एक कैमरामैन को भेजा, उसने कॉल किया औऱ उसका वहां एडमिशन हो गया। आप शेयर कर दीजिए, ज्यादा लोगों तक पहुंच जाएगा। जतिन ने तो पिछले तीन दिनों में तीन ऐसे लोगों का एडमिशन करवाया है, जिनके यूं बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। ये सब वैसे लोग हैं जो सड़क पर आपको आम आदमी ही नजर आएंगे लेकिन इनके अंदर ईश्वरीय अंश ज्यादा है। इनके जीवन में यह यश हमेशा रहेगा कि किसी को बचाने में इनका बड़ा योगदान रहा। मेरा इन सबों को हृदय की गहराइयों से प्रणाम है।
इतना कुछ लिखने के पीछे एक मकसद यह भी था कि मैं यह बता सकूं कि इस समय कोरोना से जूझ रहे लोगों को बचाने का जितना काम पत्रकार कर रहे हैं, उतना शायद ही कोई कर रहा होगा। इस देश मे पिछले कुछ वर्षों से पत्रकारिता औऱ पत्रकार दोनों बदनाम रहे हैं। यह पूरी संस्था ही शक और संदेह में घिरी रही है। इसके कारण किसी औऱ विमर्श और बहस का हिस्सा है, लेकिन आज उन्हीं पत्रकारों ने अपना लगा कर, खुद को कई घंटे खपाकर, देश के इस भयावह समय में लोगों का जीवन बचाने में मदद कर रहे हैं। आस छोड़ रहे लोगों की उम्मीद बन रहे हैं। मैंने हमेशा इस पेशे से मोहब्बत की है। इसको लोकतंत्र का बहुत जरुरी औऱ महत्वपूर्ण हिस्सा माना है। इसलिए तमाम तरह के दबावों के बावजूद किसी तरह के पूर्वाग्रह और पक्षपात के साथ पत्रकारिता नहीं की। मैं एक स्थायी मत लेकर की जानेवाली पत्रकारिता को हमेशा बाजारु और सस्ता ही मानता रहा हूं। चाहे वो इधर की हो या उधर की। ये हथियार देश को मजबूत और जनता को जागरुक करने के लिए है। ऊपर जितने लोगों का मैंने आज जिक्र किया वे इस मूल चिंता और विवाद से परे हैं। वे सिर्फ स्टोरी करनेवाले लोग हैं। जैसा है वैसा भेजनेवाले लोग। दिनभर देह पीटनेवाले लोग। लेकिन सिस्टम में अपनी साख रखनेवाले लोग भी। इन्हीं लोगों ने मैदान में अपनी जान की बाजी लगा रखी है। यही वो खुदा है जो मरी हुई उम्मीदों को हरा कर रहे हैं। बहुत शुक्रिया आप लोगों का और बहुत बरकत मिलेगी आप सबों को इस दुआ के साथ शुभ रात्रि!!