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बुधवार, 12 मई 2021

सरकार के लिए पत्रकार फ्रंट वॉरियर्स क्यों नहीं ?

कोरोना डायरी 28 अप्रैल 2021 

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कोरोना के इस ख़ूनी कहर में पत्रकार भी बड़ी तादाद में चपेट में आए हैं। रोज कई साथियों की मौत की खबर देखता हूं। सोशल मीडिया भय और मातम का मंच बना हुआ है। कोई ऐसा मीडिया संस्थान नहीं है जिसका कम-से-कम आधा हिस्सा ( संख्या के लिहाज से) ध्वस्त नहीं हो गया हो। उनमें से कइयों की जान चली गई। मेरे साथी मनोज मनु ने कल एक पोस्ट ह्वाट्सैप पर भेजी। सहारा समय मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ की एंकर निकिता सिंह तोमर को समय पर इलाज नहीं मिल सका औऱ उनकी जान चली गई। वेंटिलेटर की जरुरत थी, लेकिन इंतजाम जबतक हुआ बहुत देर हो चुकी थी। कुछ मित्रों ने न्यूज नेशन के एंकर साकेत, वीडियो जर्नलिस्ट मनोज सिंह और सेटकॉम (टेक्नीकल डिपार्टमेंट का एक हिस्सा) सुरेंद्र की तस्वीरें डालकर उनको याद किया है। उनके जुझारूपन, उनकी लगन और उनके अपनेपन पर आंसू बहाए हैं। जनता टीवी के एंकर साकेत सुमन को भी कोरोना ने लील लिया। उनके कई करीबी मित्रों ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द साझा किया है।
देश भर में ऐसे अनगिनत नाम है- बिहार के मधेपुरा से लेकर महाराष्ट् के बीड तक- जो इसलिए मारे गए क्योंकि वे फर्ज निभा रहे थे। वे पत्रकार थे। घर में बैठकर खुद को बचाने की गुंजाइश उनके पास नहीं थी। या शायद वो ऐसा चाहते भी नहीं थे। जो लोग टीवी में काम करते हैं उनको यह बात ठीक से समझ में आएगी कि चाहे वो सेटकॉम में बैठा साथी हो या मैदान पर काम करता रिपोर्टर, सबका जोखिम कमोबेश बराबर है। आप घर से बाहर निकलते हैं औऱ खतरे के दायरे में आ जाते हैं। आपकी जिंदगी वहीं से मौत से खेलने लगती है। काम के दौरान तमाम एहतियात के बावजूद आपके सिर पर खतरा मंडराता रहता है। रोजाना आपके साथी पॉजिटिव होते रहते हैं और आप अपने धराशायी होने तक काम करते रहते हैं। चारों ओर कोहराम-सा है लेकिन पत्रकार जो बचा है, वह डटा है। मैं यह मानता हूं कि इस दौर में जब इंसान घर के अंदर भी मौत के आतंक से दहला हुआ है, उस समय जो लोग निकलकर अपना काम पूरी शिद्दत से कर रहे हैं- वे जिगर वाले लोग हैं। उनका दूसरा कोई इम्तिहान हो ही नहीं सकता। उनके लिए इससे बड़ा कोई और सर्टिफिकेट भी नहीं। ये सारे लोग मौत की आंख में आंख डालकर काम करते हैं। लेकिन मुझे हैरत इस बात पर रही कि सरकार ने जब फ्रंट वॉरियर्स तय किए तो उसमें पत्रकारों को नहीं रखा। वैक्सीन जिनको उम्र की सीमा के बगैर लगनी थी उनमें पत्रकार नहीं थे। डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाईकर्मी, पुलिसवाले वगैरह तो उस दायरे में आए लेकिन जो तबका दिन रात सड़क पर रहा, अस्पतालों के बाहर, लोगों के बीच रहा- उसको हाशिए पर डाल दिया गया। यह एक तरह की अमानवता औऱ नाइंसाफी रही। पत्रकार विरादरी को व्यवस्था ने एक हथियार या औजार के तौर पर इस्तेमाल किया लेकिन उसके जोखिम, जरुरतों की कभी फिक्र नहीं की। जो संस्थाएं पत्रकारों की खातिर बनी हैं, ऐसी बातें उसकी समझ तक ही नहीं पहुंचती। कोई ऐसा संगठन नहीं बना जो पत्रकारों के जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, यात्रा सुविधा जैसी सहूलियतों की चिंता करे। या फिर ये फ्रंट वॉरियर्स में उनको शामिल करने के लिए लड़े। विशेषतौर पर टीवी इंडस्ट्री में बड़ी आबादी 45 से नीचे की है और अबतक अगर वो असुरक्षित रही या फिर उसकी जान गई तो इसलिए कि मीडिया के लोग फ्रंट वरियर नहीं माने गए। उनको वैक्सीन से दूर रखा गया। अब एक मई से जब देशभर को वैक्सीन लगेगी तो उसी का हिस्सा मीडियाकर्मी भी होंगे। सच तो ये है कि हर पत्रकार बिरादरी में होते हुए भी अकेला योद्धा है। उसका अपना मोर्चा है। अपनी जीत है औऱ अपनी हार भी।
मैं अभी भड़ास के लिंक्स देख रहा था तो लगा कि कितने पत्रकार कोरोना की चपेट में आए। ये तो एक जगह दर्ज मामले हैं. ऐसे हजारों मामले होंगे।
कई अख़बारों में जनरल मैनेजर रहे बीरेन्द्र शाही का निधन ☛ https://www.bhadas4media.com/birendra-shahi-aakash-nikita/
निवाण टाइम्ज़ के वरिष्ठ पत्रकार की मौत ☛ https://www.bhadas4media.com/nivan-times-raju-mishra-death/
बिलासपुर के पत्रकार गणेश तिवारी का निधन ☛ https://www.bhadas4media.com/ganesh-tiwari-bilaspur-death/
रवीश कुमार भी कोरोना की चपेट में आए! ☛ https://www.bhadas4media.com/ravish-bhi-corona-ki-chapet.../
अमृत विचार अख़बार के दर्जनों मीडियाकर्मी संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो गए ☛ https://www.bhadas4media.com/amrit-vichar-ke-karmiyon-ne.../
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार बद्री विशाल भी नहीं रहे ☛ https://www.bhadas4media.com/badri-vishal-corona-death/
वरिष्ठ पत्रकार अनिल वार्ष्णेय को भी कोरोना ने छीन लिया ☛ https://www.bhadas4media.com/anil-varshney-corona-death/