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बुधवार, 12 मई 2021

रिश्ते में कभी अपना पराया नहीं होता

 कोरोना डायरी 22 अप्रैल 2021 

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मेरे मित्र और बड़े भाई सरीखे विकास मिश्रा ने पोस्ट लिखी। किसी ने फोन किया कि पढिए। मैंने पढी। विकास जी सहज और मेरी तरह ही भावुक इंसान है। उन्होंने बहुत कुछ ऐसा लिखा जिसको लेकर मैं हमेशा असहज हो जाता हूं। रिश्ते में कभी अपना पराया नहीं होता। कुछ रिश्ते जीवन में कई अधिकार औऱ जिम्मेदारियों के साथ होते हैं, विकास जी के साथ भी वैसा ही रहा है। विकास जी ने जिस रंजना की खातिर बीती रात पोस्ट डाली, वह मुझे आधी रात दिखी। आजकल पोस्ट, मैसेज इतने होते हैं कि समय लगता है, देखने और जवाब देने में। आधी रात ही मैंने दिल्ली सरकार की तरफ से काम देख रहे अपने छोटे भाई जैसे दिलीप पांडे को वह मैसेज भेजा। जवाब तुरंत आया- भैया थोड़ा समय दीजिए। सुबह तक रंजना के करीबी का दाखिला हो गया। बाद में उसने मैसेज किया कि विकास भैया की तरह अब जीवन भर आप भी मेरे भाई । रिश्तों के रेशे अपनापा का पानी लिये हमेशा ताजा और मुलायम रहते है। विकास जी, जिंदादिल, खुशमिजाज, गुदगुदी से भरे और महफिली इंसान हैं। उनकी कोशिश के चलते एक इंसान की जिंदगी मुश्किल से बाहर आई।

आज एक डॉक्टर के बर्ताव से काफी तकलीफ हुई और गु्स्सा भी आया। देहरादून के मेरे एक मित्र हैं, उनकी भांजी गुड़गांव में रहती है। समूचा परिवार कोरोना पॉजिटिव है। किसी के भी बाहर जाने की हालत नहीै है। ससुर गुड़गाव के सेक्चर 84 के जेनेसिस अस्पताल में भर्ती है। उनको पहले आईसीयू में डाला, फिर निकाला। बाद में कहा चेस्ट इंफेक्शन है। आगे बताया कि बढ रहा है रेमडेसिविर देना पड़ेगा। मरता क्या ना करता। परिवार ने दिलवाया, लेकिन यह कैसे हुआ ये कहानी फिर कभी। एक डॉक्टर हैं वहां भावेश। बताया गया कि यही देखते हैं। मैंने फोन कर कहा कि देखिए गोपाल सिंह आपके यहां एडमिट हैं, उनके परिवार के सारे लोग पॉजिटिव हैं। कोई देखने नहीं आ सकता और आपलोग जिसतरह से परिवार को बता रहे हैं, उससे उनका डर बढता जा रहा है। खयाल रखिए। इस डॉक्टर का तेवर ऐसा हुआ कि जैसे उसने मरीज ने गुलाम रखे हैं। छूटते ही कहा सुनिए अगर प्रॉब्लम है तो आप खुद एक आदमी को रखिए जो उनकी देखरेख करे। गुस्सा मुझे भी आया था लिहाजा मैंने कहा कि सुनिए वो आपके मरीज हैं और उनका ख्याल रखना आपका काम है। इसके लिए आप मोटी रकम वसूल रहे हैं। आगे कुछ कहता उससे पहले डॉक्टर ने फोन रख दिया। बाद में मैंने इसकी शिकायत सीएम ऑफिस तक की। गोपाल सिंह फिलहाल उसी अस्पताल में हैं।
दिन में गाजियाबाद के वसुंधरा से एक सज्जन का मैसेज आया। एक परिचित का हवाल देकर लिखा था - मरीज की हालत नाजुक है। नाम विनय पांडे और ऑक्सीजन लेवल 35 है। पढते ही दिमाग चकरा गया। 35 के ऑक्सीजन लेवल का आदमी अभी तक है तो ईश्वर की मेहरबानी है। मैंने अपने गाजियाबाद रिपोर्ट जतिन गोस्वामी को मैसेज भेजा और फोन किया। जो कर सकते हो करो लेकिन इस आदमी को बचाना जरुरी है। जतिन ने दो घंटे की जद्दोजहद के बाद उस आदमी का एडमिशन करवाया। मैंने रात मे पूछा मैसेज करनेवाले से भाई कैसी है अब तबीयत । बोले सर सुधार है। ईश्वर है तो सुनेगा।
दिन में एक मैसेज आया गुड़गांव के एक कोविड पॉजिटिव हितेश बागला के लिए। उम्र 43 साल औऱ ऑक्सीजन लेवल 58। यह मामला भी क्रिटिकल था। मैने गुड़गांव में इंडिया न्यूज के रिपोर्टर राज वर्मा को फोन लगाया। राज, मैंने एक व्हाट्रसैप मैसेज भेजा है। ऑक्सीजन लेवल 58 है, तुरंत एडमिशन चाहिए। राज ने घंटे भर बाद फोन किया - सर हो गया। राज वर्मा औऱ जतिन गोस्वामी ने देश और समाज की जरुरत के इस दौर में शानदार काम किया है।
एक आदमी ऐसा है, जिसके बारे में मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं शायद इन दिनों तीन-चार घंटे सो रहा हूं। लेकिन वो आदमी इतना भी सोता होगा या नहीं, मैं नहीं कह सकता। दिलीप पांडे। आम आदमी पार्टी के विधायक हैं और दिन रात लोगों के इलाज का इंतजाम करने में लगे रहते हैं। मेरी तरह पता नहीं कितने लोग होंगे जो तुरंत अपना काम होने का दबाव डालते होंगे। क्या मजाल दिलीप कभी ना कह दें या ऊब जाएं। समय इंसान का कभी-कभी ही इम्तिहान लेता है। जो लोग बुनियादी तौर पर सही होते हें, वही उस इम्तिहान को पास करते है। दिलीप के साथ ऐसा ही है। मेरे एक मित्र की बुआ शालिमार गार्डन में अकेली रहती हैं। ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था लेकिन 90 था। फोन आया- बुआ जी को तुरंत एडमिशन चाहिए। मेरे ब्योरा दिलीप को भेजा। थोड़ी देर में एक व्वॉयस मैसेज और एक नंबर आया । भैया कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज में भेजिए, वहां 90 से ऊपर के ऑक्सीजन लेवल के मरीजों का एडमिशन हो रहा है, अच्छा इंतजाम है। कोई दिक्कत हो तो मेरे रेफरेंस से इस नंबर पर बात करवा दीजिएगा, जो भेजा है। हो गया।
दिलीप के काम को मिसाल के तौर पर ऱखा जाना चाहिए। मेरे साथ रिश्ता अलग है। डांट-डपट भी कर दूं तो जी भैया हां भैया करके सुन लेंगे। लेकिन मैं आप लोगों के लिए दिन रात लड़ते हुए मैं उस आदमी को देख रहा हं। समय बहुत बुरा है, जब यह तूफान गुजरेगा फिर दिलीप के काम का अंदाजा होगा। आज मैने कहा तुम इतना लगे हो, दिल्ली की सारी परेशानियां जानते हो, थोड़ी देर के लिए चैनल पर लाइव बैठ जाओ औऱ बताओ क्या समस्या है। दिलीप ने कहा- भैया मुझे नहीं लगता मैं कोई बड़ा काम कर रहा हूं। मैं दुखी ज्यादा हूं। मुझे अभी इन्हीं लोगों के बीच रहने दीजिए। समय कहीं और जाएगा तो किसी की जिंदगी का सवाल बन जाएगा। रहने दीजिए। बस, इतने से ही आप दिलीप को समझ सकते हैं।
देर रात नोएडा पुलिस का मैसेज आया । जो सिपाही कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, वो प्लाज्मा दे सकते हैं। उनका संपर्क नंबर कमिश्नर ऑफिस ने साझा किया था। 8851066433। पुलिस कमिश्नर आलोक जी ( मैं उन्हें आलोक भाई कहता हूं) ने पुलिस की भूमिका को सुरक्षा के साथ समाज के प्रति जिम्मेदारियों से जोड़ा है। किसी भी सवाल पर खुले दिल से सुनने और समझने के लिए तैयार रहते हैं। कल मैने जिक्र किया था कि नोएडा के सेक्टर 39 के सरकारी अस्पताल में पूर्णिया के मेरे एक मित्र नीतेश भाई के जाननवाले एडमिट हैं और उनका कोई इलाज हो ही नहीं रहा। मरीज इस बात से परेशान है कि उसको कोई दवा ही नही दी जा रही है। उनके चेस्ट का सीटी स्कैन करना है, हुआ नहीं। मैने इस बारे में नोएडा के डीएम, कमिश्नर को ट्वीट किया और बताया कि मरीज कितना डरा हआ है। आज उस मरीज की पूछ परख हुई तो उसको थोड़ी राहत मिली। यह आलोक भाई की वजह से हुआ होगा ऐसा मेरा यकीन है। कल उस आदमी का चेस्ट सीटी करवाना जरुरी है।
मेरे मोबाइल और फेसबुक के इनबॉक्स भरे हुए हैं। मध्य प्रदेश, महाराषट्र, यूपी, बिहार से लोग अपनों के इलाज के लिए संदेश दे रहे हैं। दिल्ली एनसीआर तो है ही। लेकिन मैं कोई संस्थान नहीं हूं। नौकरीपेशा एक अदना सा इंसान हूं। अगर जिला प्रशासन और सांसद विधायकों की पूरी लिस्ट हो तो मैं अपना सारा समय लगाकर लोगों के इलाज का प्रबंध करुं। मगर लोग इतनी मुसीबत में हैं कि उनको इससे क्या मतलब कि मेरी हैसियत इतनी नहीं है। वे चाहते हैं कि उनके अपने का इलाज हो जाए। जान बच जाए। सैकड़ों की तादाद में लोग अपना साथ, समर्थन और सदभावना भेज रहे हैं। मैं जानता हूं कि वे इस देश के ऐसे नागरिक है जो अच्छे की उम्मीद करता है। अच्छी व्यवस्था, अच्छी सत्ता, अच्छा समाज और अच्छे लोग। लेकिन वह ऐसा कुछ भी नहीं पाता तो जहां भी उसको थोड़ी उममीद दिखती है, वह उसको पालने पनपाने में लग जाता है। मैं फिर कहता हूं कि मैं एक नौकरीपेशा साधारण सा नागरिक हूं इस देश का। कुछ शर्तो और उसूलों पर जिंदगी जी है। उनसे समझौता नहीं करता। देश की आजादी के 74 साल बाद भी रोटी, इलाज, पढाई एक चुनौती है तो सवाल तो है। लेकिन इसका दोष सिर्फ नेताओं पर ही डाला जाए, वह भी सही नहीं। समाज ने भी खुद को तैयार नहीं किया। खैर, ये ऐसा मामला है जिसपर लंबी बहस हो सकती है। लेकिन मैं चाहता हूं कि तमाम जिलों के कलेक्टर, सीएमओ, सांसद ओर विधायक और अस्पताल चलानेवाले ड़ॉक्टर अगर थोड़ी मदद करें तो ऐसी कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं जो सिर्फ कुछ लापरवाहियों के कारण जान गंवा बैठती हैं। मैं दो लोगो का यहां जिक्र करना चाहूंगा। एक मेट्रो अस्पताल के ओनर और पद्मविभूषण डा. पुरुषोत्तम लाल और दूसरे कैलाश अस्पताल के मालिक डा. महेश शर्मा। इन दोनों लोगों ने कुछ ऐसे मामलों में सहयोग किया है, जिसमें सब हाथ से फिसलता लग रहा था। इन दोनों की भूमिका मैने पेशेवर कम इंसानी सरोकार से जुड़ी ज्यादा देखी है।
पिछले कुछ दिनों में फेसबुक फ्रेंड्स रिक्वेस्ट की बाढ सी आ गई है। मेरा कोटा पहले से ही भरा हुआ है। इसलिए मेरे फेसबुक पेज को आप सब फॉलो कर लें तो मैं वहां भी आपसे जुड़ा रहूंगा। बहुत सारी उम्मीदों और मदद के मैसेज हैं आपके, मैं कोशिश करता हूं कि सबका कुछ कर पाऊं लेकिन आप यूं समझिए कि तीन-चार घंटा सोने के अलावा मैं अपने दफ्तर की जिम्मेदारी और आपके काम में ही लगा रहता हूं। बहुत औऱ जायज तरीके से यह लाजिमी है कि मैं वो सब ना कर पाऊं जो मुझसे आप चाहते हैं। लेकिन जो कुछ भी कर पा रहा हूं, वह कुछ ऐसे ही लोगों की मदद से जो बेहतरीन इंसान है औऱ इस भयावह समय में वे हर हद पार कर लोगों की मदद करने की रोजाना कई कामयाब कोशिशें करते हैं। उन सबका जिक्र कभी तफ्सील से करुंगा। इस वक्त तो बस आप अपने परिवार के साथ सुरक्षित रहिए और हर सावधानी बरतिए।