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बुधवार, 12 मई 2021

परहित सरिस धरम नहीं भाई

कोरोना डायरी 8 मई 2021 

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देश के किसी भी हिस्से में बात कीजिए, वहां के सांसद साहब औऱ विधायक शायद ही लोगों के संपर्क में आजकल हैं। अपवाद होता है, होगा भी। लेकिन सामान्य स्थिति यही है। महानगरों औऱ दूसरे दर्जे के शहरों में मीडिया की मौजूदगी से वहां के कोहराम और लचर इंतजाम की खबरें देश देख-सुन रहा है। लेकिन छोटे-छोटे शहरों और दूर-दराज के गांवों तक पर कोरोना का कहर टूटा हुआ है। पत्रकार औऱ निवाण टाइम्स के संपादक कपिल त्यागी के ट्वीट को उदाहरण के तौर पर रख रहा हूं। वे एक जगह लिखते हैं कि – “ रोहतक के टिटौली गांव में कोरोना का कहर, 10 दिन में 40 लोगों की मौत, 1 दिन में 11 चिताएं जलने के बाद मानो लोगों की सांसे तक रुक गई हैं। गांव के लोग घर से बाहर निकलने में कतरा रहे हैं।“ दूसरे ट्वीट में वे लिखते हैं- “ मेरठ के इकरी गांव में पंचायती चुनाव ने कहर बरपा दिया है। गांव मे सिर्फ 40 टेस्ट किए गए, जिनमें से 21 पॉजिटिव निकले। अबतक छह लोगों की मौत हो चुकी है। यह केवल इकरी गांव की कहानी नहीं है, गांव-गांव का यही हाल है। युद्धस्तर पर काम करना होगा।“ कपिल के ट्वीट हरियाणा औऱ उत्तर प्रदेश के गांवों की असलियत बता रहे हैं। अब बिहार चलिए। दो हफ्ते पहले भोजपुरी फिल्म के गीतकार-संगीतकार श्याम देहाती की कोरोना से मौत हो गई। उनके अंतिम संस्कार में 54 लोग शामिल हुए और वे सब कोविड पॉजिटिव हो गए। एक ही गांव के 54 लोग। सोचिए आज उस गांव का क्या हाल होगा! हुआ ये कि श्याम देहाती मुंबई से अपने गांव महुई आए। जब संक्रमित हुए तो इलाज चला, लेकिन बच नहीं सके। बिहार के कई गांव ऐसे हैं जहां लोग बड़ी तादाद में कोविड पॉजिटिव हैं। इलाज का इंतजाम नहीं है। य़ह स्थिति देश के सभी राज्यों में है। लेकिन क्या मजाल कि सांसद और विधायक- जो मौजूदा व्यवस्था है उसका पूरा फायदा लोगों को मिल सके- इसके लिए मुस्तैद और संपर्क मे हों! 102 की एंबुलेंस सेवा पर फोन लगाकर देखिए क्या हाल है! कई जगहों पर संसाधन हैं लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है, क्योंकि जिनलोगों पर जवाबदेही है, उनको इस बात से मतलब ही नहीं रहता कि एंबुलेंस-बेड-ऑक्सीजन-दवा से लोगों का इलाज हो सकता है। मानसिकता औऱ संस्कार ही लापरवाही और लुंजपुज व्यवहार से भरे हैं। आज ही एक चैनल पर खबर देख रहा था, सहरसा में दो सौ करोड़ का कोविड अस्पताल बनकर चकाचक तैयार है। 60 मरीजों के लिए पूरी तरह लैस।लेकिन बंद है। ऐसे ही खड़े-खड़े सड़ जाएगा लेकिन कोई पूछेगा नहीं कि आखिर ऐसा क्यों है? डीएम, बीडीओ, विधायक, सांसद सब अपने-अपने में रमे रहते हैं। लूट करवा लो। कमीशन खिलवा लो। अटारी पिटवा लो। लेकिन जो काम जरुरी और जनहित का है, उसके बारे में चिंता नहीं करनी है।
ऐसे में कुछ नेताओं को मैंने निजी तौर पर अपनी जमात से हटकर लोगों की मदद में जुटे देखा। आप यह भी कह सकते हैं कि ऐसा वे अपने भविष्य को ठीक करने के लिए कर रहे हैं तो यह भी बताना चाहिए कि जो कहीं नहीं दिख रहे, फोन और घर के दरवाजे बंद किए बैठे हैं- वे आगे लोगों के बीच नहीं आएंगे क्या? फिर? मैं यह मानता हूं कि इन लोगों में इंसानियत और समाज को लेकर अपनी जिम्मेदारी का एहसास है।
कल मैं बचपन के अपने मित्र के रिश्तेदार को टाटा हॉस्पिटल, जमशेदपुर में आईसीयू बेड दिलवाने की कोशिश में लगा था। उनकी हालत तेजी से बिगड़ रही थी। मैंने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से लेकर राहुल गांधी तक को अपने ट्वीट में टैग किया। इसके बाद में अपनी जान-पहचान के लोगों को मदद के लिए फोन भी कर रहा था। इसी क्रम में टीवी पत्रकार और मेरे लिए छोटे भाई की तरह चंदन सिंह का फोन आया। “सर, मैंने कुणाल सारंगी जी को कहा है, वे लग गए हैं। थोड़ा समय दीजिए, काम हो जाएगा” चंदन ने कहा। मैंने कहा थोड़ा फॉलो कर लेना जरुरी है। करीब तीन घंटे बाद मेरे मित्र के रिश्तेदार को आईसीयू बेड मिल गया। कुणाल सारंगी ने ऐसा नहीं कि मेरे लिए अलग से जाकर कुछ नया किया, बल्कि पता करने पर मालूम हुआ कि वे दिन-रात लोगों को इलाज दिलवाने और उनकी जान बचाने में लगे हुए हैं। वे
पूर्व विधायक हैं और आज की तारीख में झारखंड में बीजेपी के प्रवक्ता हैं। पढे-लिखे, सुलझे और समझदार नेता है। आज जब नेता नजर नहीं आ रहा है, कुणाल सारंगी जनता के बीच हैं। जनता की खातिर टेस्ट से लेकर एडमिशन तक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस देश को खासकर झारखंड के लोगों को यह जरुर याद रखना चाहिए।
गुरुवार की रात कानपुर से मेरे एक नजदीकी परिवार का फोन आया। लखनऊ में एक सज्जन मनोज वर्मा को तुरंत आईसीयू बेड की जरुरत थी। ऑक्सीजन लेवल सपोर्ट के साथ 65 था। ऐसे तो 50 या उसके नीचे आ रहा था। मैंने ट्वीट और पोस्ट करने के बाद दो लोगों को फोन किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार सिंह को औऱ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया को। मैंने यह भी कहा कि जिस अस्पताल में हैं, वहां आईसीयू बेड नहीं है तो एक काम कर सकते हैं- मुख्यमंत्री दफ्तर अगर सिफारिश कर दे तो डीआरडीओ ने जो अस्पताल बनाया है, वहां आईसीयू बेड मिल सकता है। दोनों युद्दस्तर पर लग गए। इस तरह की तीन-चार मिनट में अनुराग भदौरिया ने सरकारी अप्रूवल का कागज मुझे व्हाट्सैप कर दिया। मृत्युंजय जी का फोन आने लगा – उनलोगों को बोलिए फोन उठाएं, लगातार करने पर भी कोई उठा नहीं रहा। मैने परिवार को बोला- बात हुई। संयोग ऐसा बना कि मरीज को उसी अस्पताल में आईसीयू बेड मिल गया।
अनुराग भाई को आप दिन भर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाते, बेड दिलवाते, उनका टेस्ट करवाते पाएंगे। बहुत मुमकिन है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकाक्षाएं उनसे ये करवाती हों, लेकिन आदमी समाज के काम आ रहा है यही बात ऐसे हर सवाल को बेमानी कर देती है। मृत्युंजय जी राजनेता नहीं हैं लेकिन मुख्यमंत्री से जुड़े हैं। उनको पता है कि उनकी छवि से मुख्यमंत्री को फायदा या नुकसान हो सकता है। लिहाजा वे खुद से जितना संभव हो पाता है, लोगों की मदद में लगे रहते हैं, यह मैने निजी तौर पर देखा है।
नोएडा में बिहार के पूर्व डीजीपी नीलमणि साहब के बेटे मनोज श्रीवास्तव आम्रपाली सिलिकॉन सिटी में रहते हैं। ऑक्सीजन लेवल 80 पहुंच गया और शहर में किसी भी अस्पताल में जगह नहीं मिल रही थी। बीजेपी के पूर्व सांसस स्व. लालमुनि चौबे के पुत्र और छोटे भाई सरीखे शिशिर चौबे ने मुझे यह बात बताई। मैं मदद के लिए तुरंत ट्वीट और पोस्ट करने के बाद फोन करने लगा। उधर ट्वीटर और फेसबुक पर लोग उनके लिए अस्पताल और फोन नंबर डालने लगे, जहां से सहायता मिल सकती थी। इसी दौरान फिल्म एक्ट्रेस तापसी पन्नो ने भी मेरे ट्वीट को रीट्वीट किया। मुंबई में बैठकर एक फिल्म स्टार को नोएडा के एक आदमी की चिंता हुई यह इंसानियत की पहचान तो है ही। खैर, कुछ देर बाद मेरी दोस्त स्वाति शर्मा का फोन आया कि रोहित ने इंतजाम करवा दिया है, आप उनको बोलिए कि फोन उठाएं। रोहित मतलब हम दोनों के कॉमन फ्रेंड औऱ बीजेपी के प्रवक्ता रोहित चहल। मैंने शिशिर को फौरन फोन किया औऱ कहा कि उनको बोलो फोन उठाएं। मनोज जी का मेट्रो अस्पताल में एडमिशन हो गया। अभी वे बेहतर हैं। रोहित का जिक्र मैं इसलिए करना चाहता हूं क्योंकि वे कोविड के इस भयानक दौर में अपनी क्षमता से आगे जाकर लोगों की काफी मदद कर रहे हैं।
जीवन में कुछ लोग बहुत जरुरी से होते हैं। उनके बिना आपका अपना दायरा पूरा नहीं होता। उनमें से ही हैं- अमित आर्या। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया सलाहकार। अमित भरोसे और अपनेपन का दूसरा नाम हैं। मेरे जीवन में ऐसे लोगों की संख्या गिनी-चुनी है। फोन आया। सर, एक मित्र हैं – संजय पांडे। चंडीगढ से निकले हैं, सोनीपत तक आ गए हैं। उनके पिता जी नोएडा के आम्रपाली प्लैटिनम में रहते थे, उनकी मौत हो गई है। एक एंबुलेंस चाहिए नोएडा से गढ मुक्तेश्वर तक के लिए। मैंने बिना डिटेल्स साझा किए बस इतना ही ट्वीट किया कि एक मित्र के पिता का निधन हो गया है। अंतिम संस्कार के लिए नोएडा से गढमुक्तेश्वर तक के लिए एंबुलेंस मिल जाएगी क्या? ये दुनिया जिसे आभासी कहते हैं, निहायत अपनी है। बिल्कुल पास और जज्बाती। कई दोस्तों ने मदद के लिए लिखा। इसी दौरान देश के जाने माने कवि और प्रखर वक्ता कुमार विश्वास के दफ्तर का ट्वीट आया- सर, नंबर दे दीजिए हमलोग बात कर रहे हैं। मैंने नंबर दे दिया।
कुमार विश्वास ( वैसे मैं कुमार भाई कहता हूं) मेरे जीवन के उसी दायरे में आते हैं जिसमें अमित आर्या और कुछ और चुनिंदा दोस्त-भाई, जिनके बिना जीवन पूरा नहीं होता। जो आपके भरोसे और भाईचारे की दुनिया को लबालब भरकर रखते हैं। यारों के यार, जानदार और शानदार इंसान कुमार विश्वास। हमारे रिश्ते पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन एक इंसान जो टके की बात और टनाटन कहने में ही जीता है, जिसने कहने और कह जाने के कारण क्या-क्या नुकसान नहीं उठाया है, उसकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो 16 आने इंसान है। कुमार की दुनिया बड़ी है, लेकिन अपने सीमित। उनका दफ्तर आज लोगों का दुख कम करने और पीठ पर अपनों जैसा हाथ रखने में लगा रहता है। गाड़ी, ऑक्सीजन सिलेंडर, एडमिशन के लिए कई लोगों से निवेदन और ना जाने क्या-क्या। कुमार ना भी चाहें तो कोई सवाल नहीं कर सकता। लेकिन अपने जरिए अपने आगे रखे जानेवाले सवालों का जवाब देने के लिए कुमार विश्वास लोगों के बीच हैं। उनकी टीम ढूंढती रहती है कि कहां मदद पहुंचायी जा सकती है। यह कुमार की कथनी-करनी के संतुलन का उदाहरण है।
मैंने ऊपर जिन लोगों का जिक्र किया है, उनकी खूबी क्या है? वे बड़े बड़ों का सहयोग कर सुर्खियां बटोरने में यकीन नहीं कर रहे, बल्कि वे इस देश के साधारण और मदद के लिए मुंह ताक रहे लोगों की तरफ हाथ बढा रहे हैं। ऐसे लोगों को याद रखा जाना चाहिए। इनकी तरह हजारों लोग देश में लगे हुए हैं। मैं इन सबके जरिए उन लोगों को भी अपना प्रणाम भेज रहा हूं। अपने घरों में बैठकर अपनी जान की खैर मनाने वाले वैसे लोग जो खुद को सामाजिक सरोकार और देश हित से जोड़कर देखते हैं, उनको इनकी तरफ भी देखना चाहिए।