भरम ही सही जिंदगी पर कुछ नाज़ कर लूं ज़रा
सीने में सांस, हथेली में रोशनी बंद कर लूं ज़रा
पता है सोने के खेतों में फ़सलें नहीं उगतीं
क्या हुआ गर हुनर अपना भी आज़मा लूं ज़रा
कुछ टूटता रहा अंदर, उनके जाने की बात पर
मैं पानी हूं ये यकीन उनको दिला लूं ज़रा
कागज़ की कश्तियों की उम्र सा हूं नामुराद
बस दरिया के सीने में फना हो लूं ज़रा