रात जब चमचम चांद
निहारती है देर तक
गुज़रे दिनों के परिंदे
उड़ते हैं झुंड में
अधूरी मुरादों के सूखे पत्ते
झड़ते हैं दूर कहीं
धुंध सी लटकी रहती हैं
हमारी बातें आसमान में
नदी की देह पर चांदी के डोरे
पिरो जाता है कोई
तुम्हारी सांसो के गुलाब
महकते हैं चारों ओऱ
और मुलायम सी हंसी के रेशे
उड़ते हैं बादलों तक
सर्द रातों के काफिलों की
आहट अब आने लगी है
कि चलो अलाव जलाएं
रात अभी बाकी है