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शुक्रवार, 19 जून 2015

रेखा


भोर का तारा-
गहरी रात में उतरती संतरी सुबह
कोहरे की नशीली महक
आदि और अंत के बीच खड़ा
दमकता लपकता प्रकाशपुंज.
एक अबूझ पहेली-
अनाम रिश्ता ढोता सिंदूर
दूर तक पसरा अकेलापन
अचानक से टपके कुछ बेनाम आंसू
और नरगिसी हंसी में लिपटे कुछ धूप से सवाल.
एक सरगम -
संदल का लहराता जंगल
दर्द गाता-गुनगुनाता दरिया
नीले आसमान को थपकियां देती रात
उमराव के अंजुमन का तराना अधूरा .
एक अदाकारा-
चांद से बेहतर ज़मीं की तामीर
इश्क को सलाम भेजती नज़र
लौ सी लपकती देह की लहराती कलाइयां
और चूड़ियों के बाज़ार का सबसे चमकदार रंग
एक अफसाना-
बंद दरवाज़ों के बाहर ठहरी राह
तिलिस्म में लिपटे दरो-दीवार
महफिलों में अदब से झुकती जवां सुरीली रात
और दूर आसमान में भटकते चांद का अमिताभ.