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शनिवार, 20 जून 2015

ये कैसी जम्हूरियत



मेरे दौर में ये कैसी राज़दारी है
ज़मीन हल्की है, हवा भारी है
गोलियों पर उसी ने नाम लिखा था
भीड़ में आज जिसकी तरफदारी है
तोड़ डाले बुतखाने के सारे खुदा जिसने
बुतपरस्तों से अब उसी की यारी है
इंसां जब से मौत का सामान बन गया
मुंबई तो कभी रावलपिंडी,धमाका जारी है
दिहाड़ी से दोगुनी थाली हो गयी है
ये कैसी जम्हूरियत कितनी मक्कारी है