यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 20 जून 2015

बदायूं की बेटियां


उस पेड़ की शाखाओं के नीचे
जो खाली जगह है उधर
दिनभर उंगिलयां फेरते रहते हैं लोग 
एक अभी जहां िचडिया बैठी है वहां टंगी थी
दूसरी उस लाल गमछेवाले के िसर के ठीक ऊपर
बदायूं के इस बदकिस्मत गांव में
दिनभर तमाशा लगा रहता है
दिल्ली से लखनऊ से रोज फेरे हो रहे हैं
लोग बताते रहते हैं -
पहले उन दोनों का बलात्कार किया
फिर इसी पेड़ पर टांग दिया
धूल सनी गरम हवा में
लोगों की गोलबंदी चलती रहती है
वो कांग्रेसवाले नेताजी हैं, अभी आए हैं
कल बहनजी आएंगी , मीडियावाले कल भी रहेंगे
वो मैडम जो पीड़िता के पिता से बतिया रही हैं
महिला आयोग से आई हैं
और खाट पर बैठे लोग एनजीओवाले हैं.
सांझ तक टंगी धूल में
फुसफुसाहटें तैरती रहती हैं
कैमरे और कलम सरकते रहते हैं
काफिले दिल्ली, लखनऊ लौट जाते हैं
इंसाफ की लड़ाई का खम ठोंककर
अंधेरा होते होते बस पेड़ रह जाता है
निपट अकेला
और उन दो खाली जगहों पर
एक तूफान डेरा डाल रहा है
धूलें, सारी फुसफुसाहटें लेकर वहां जमा हो रही हैं
कैमरे और कलम की सारी तस्वीरें, सारे बयान
दर्ज हो रहे हैं वहां
उन खाली जगहों पर बदायूं की बेटियों की
आखिरी चीखें और सांसें जिंदा हैं
वहां जिंदा हो रहा है
बेटियों की आखिरी चीखों और सांसों का विद्रोह
पेड़ के शरीर की खाली जगहें जानलेवा हैं
पेड़ की खाली जगहों की तरफ
उठती उंगलियों का खून जम चुका है
दिल्ली, लखनऊ के फेरेवालों का फरेब
खतरनाक हो चला है
पेड़ की खाली जगहों पर
तूफान को जिंदा होने दो
सवा सौ करोड़ के इस खाली मुल्क को एकदिन
वही जिंदा करेगाा
पेड़ की खाली जगहों में तब खुली हवा तैरेगी निडर
जैसे अभी टहल रहा है चांद ।