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शुक्रवार, 19 जून 2015

अच्छा लगता है

कभी यार, कभी फरिश्ता, कभी खुदा लगता है
गाढे वक्त में मददगार, क्या क्या लगता है
अपना सुना औऱ लिहाज भी नहीं रखा आपने
फरेब औरों का सुनना तो बड़ा अच्छा लगता है
अपने पसीने की पूरी कीमत मांगते हैं
हमारा ख़ून भी उन्हें सस्ता लगता है
शहर में सबकुछ मिलेगा,बोलिये क्या चाहिये
बाजार को मोटी जेबवाला अच्छा लगता है
साथ जीने मरने की कसमें पुरानी हो गयीं
लैला को मजनूं कहां अब अच्छा लगता है