यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 19 जून 2015

मंज़िल

मंज़िल की तलाश है या मंज़िल तलाश रही है
रहगुज़र से वही पुरानी धुन आ रही है ।
प्यासी शाम के तन पर टूटकर बरसा पानी 
दरिया को बारिश बिसरा गीत सुना रही है।