(1)
मुहल्ले में निपट सन्नाटा
है
गली की दीवारों-खिड़कियों
पर दोपहरी चिपकी पड़ी है
एक घर के ओसारे में
चूड़ियां खनकती हैं
चूड़ीहारिनें, सुहागिनों की
कलाइयों पर
कांच की चूड़ियां सजा रही
हैं
उन लाल पीली हरी नीली
चूड़ियों में
सपनों का सिंदूरी रंग उतरा
है
दरवाज़े के पीछे से झांकती
नयी-नवेली के होठों के गीले कोरों पर
रेशमी गीत सजता है – मोरा
गोरा अंग लईले, मोहे श्याम रंग दईदे .
(2)
शहर से गांव जाती सड़क के किनारे
ईंट-भट्टे के पोखर में चांद
डोल रहा है
अंधेरा टेरती, राह टोहती बस
की खिड़की के पास बैठी
देखौनी से लौटती लड़की का
मन चांद में उलझा है
ठीक वैसे ही जैसे एक शाम
किसी के हाथ में कलाई उलझ गई थी
रातभर सीने से रेडियो चिपका
चांद निहारती रही
मन आज भी उलझा है
पोखर में रात उतरती जा रही
है, चांद डोल रहा है
आधा है चंद्रमा, रात आधी ।
(3)
शहर में रोशनी के खेत लहलहा
रहे हैं
भीड़ और शोर का अंधड़ चल रहा
है
बाल और बैग संभालता हिंदी
पट्टी का टटका नौजवान
पिज्जा पीढी की बाला की
गलबहियां डाले स्वप्नखोरी पर निकला है
अचानक रोशनी का साया घना हो
जाता है और लड़की के सीने में
धान की बालियों में उतरते
रस की तरह खदबदाहट होती है
लड़के की हथेलियों से रेशमी
आग का रेला
रगों में उफनने लगता है
यहां से वहां तक हैं चाहों
के साये, ये दिल और उनकी निगाहों के साये
(4)
बस्ती से दूर पुराने मंदिर
पर सांझ उतरी है
घंटा बज रहा है, शंख फूंका
जा रहा है
धरती से आसमान तक हवा सुगंधित
हो गई है
मंदिर के गर्भगृह में एक
दीया जल रहा है
दीये की शिखा से रागिनियों
के प्रकाश-पुंज फूट-फूट
दिग दिगंत में फैल रहे हैं
आकाशगंगाओं तक गंधर्व सुर-पर्व
मना रहे हैं
भारतवर्ष में नदियों का साझा
स्वरोत्सव चल रहा है
सत्यम शिवम् सुंदरम्