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बुधवार, 7 नवंबर 2012

आम आदमी



                   

मैं एक टुकड़ा समय का बिस्मिल यारा
कभी उड़ता, गिरता, कटा-सा बिस्मिल यारा

कुछ चादरों की सिलवटों में
कुछ वफा की बंदिशों में
कुछ यादों की किस्तों में
बंट गया, रह गया यारा.

कुछ नदी की तलहटों में
कुछ हवा की हरकतों में
कुछ पर्वतों की करवटों में
दब गया, रह गया यारा

कुछ हिना की खुशबुओं में
कुछ सपनों ki बाजुओं में
कुछ बारिश-सी इनायतों में
सज गया, रह गया यारा

कुछ उम्मीदों की रोटियों में
कुछ गरज की बोटियों में
कुछ मोलभाव की पेटियों में
पक गया, रह गया यारा

मैं एक टुकड़ा समय का बिस्मिल यारा
कभी उड़ता, गिरता, कटा-सा बिस्मिल यारा.