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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मैं हत्यारा बनना चाहता हूं






मैं हत्यारा बनना चाहता हूं
मैं चाहता हूं भरे चौराहे पर उस दरिंदे को गोली मार दूं
जिसने स्कूल से आती
तीन साल की मासूम का बलात्कार किया है.

मैं उस बाग वाले की बांह काटना चाहता हूं
जिसने अमरूद की चोरी के लिये
एक टूअर-टापर बच्चे को
पीट पीटकर मार डाला है .

मैं उस जुलूसवाले को जिंदा जलाना चाहता हूं
जिसने भूख से लड़ते लोगों की खेप खरीदी
उन्हें उकसाया-भड़काया
और अब उनकी लाश पर अपनी गोटियां सेंक रहा है.

मैं उस मिलावटखोर की खाल उधेड़ना चाहता हूं
जिसने दूध को भी ज़हरीला बना दिया
गोद की गोद सूनी हो गई
और उसके फॉर्म हाउस पर रातभर दावत जमी रही.

मैं उस खादीवाले का ख़ून करना चाहता हूं
जिसने किसानों की खून-पसीने की मेहनत को
मंडी में कौड़ियों के मोल कर दिया
और दलालों-कारोबारियों से सोने की जूतियां ले गया.

मैं उस पुलिसवाले को बम से उड़ा देना चाहता हूं
जिसने एक बेकसूर की रिहाई के लिए
उसकी बेटी की चीख-सनी बोटियां रातभर नोचीं  
खबर छपी- गरीबी से आजिज परिवार ने नहर में कूदकर जान दी.

मैं उस हुज़ूर माई-बाप को बचे रहने देना नहीं चाहता
जिसने इंसाफ का बड़ी सफाई से ख़ून कर दिया
आस में उठी आंखें पथरा गईं
और गुनाह के घर में ठ़हाकों से भर गए.

हां मैं हत्यारा बनना चाहता हूं
मैं किसी को छोड़ना नहीं चाहता
अगर तुम्हें मेरा इरादा ठीक लगता है तो साथ आओ
हाथ मिलाओ, हथियार उठाओ और चल पड़ो
चल पड़ो क्योंकि हत्यायें ज्यादा करनी होंगी
दुनिया में ये अपनी तरह की पहली क्रांति होगी
जिसमें हत्यारों से हज़ारगुना ज्यादा मरनेवाले होंगे . 

इससे पहले कि हमारे इरादे की उन्हें खबर लगे
इससे पहले कि हमारे चारों ओर सायरन बजे
इससे पहले कि सलाखों के पीछे हमपर बूटें चलें
इससे पहले कि हमपर देशद्रोह का तोहमत लगे
चल पड़ो – कि आज कुछ कर गुज़रते हैं
सबसे पहले नामर्दी की हत्या करते हैं
भीड़ की मुर्दागीरी को मारते हैं
नपुंसक नारों, गद्दार इश्तहारों को मारते हैं
अपाहिज अवतारों, स्खलित विचारों को मारते हैं
चलो चलें , क्योंकि समय बहुत कम है
और हत्यायें बेहिसाब करनी हैं.