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बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

विजयदशमी



मारो-काटो, हटाओ-भगाओ, उखाड़ो-पछाड़ो, जलाओ-गलाओ
नाश-विनाश की गगनचुंबी कामनायें है
सत्य-विजय, असत्य-पराजय की लंबी-चौड़ी घोषणायें हैं
आधी रात से मित्रों के मैसेज का तांता है
फेसबुकिया फैमिली में चीखता सन्नाटा है
भ्रष्टाचार, अनाचार, कदाचार, व्यभिचार
असंख्य सिरों के रावण का अतिवादी संसार
किसी ने पूछा है -राम के धनुष पर कैसे रावण की प्रत्यंचा!

घर घर में कैसे खड़ी हो गयी लंका!
खादीवाला, खाकीवाला, रबड़वाला, खबरवाला
सबपर दुर्वासा-क्रोध , सबपर परशुरामी हमला
कई मित्रों ने रावण दहन की तस्वीर डाली है
एक ने तो घर के हथियारों की नुमाइश कर डाली है
स्वयं के अंदर रावण के नाश का उपदेश भी है
दशानन संग आपके दुख जले- पारंपरिक संदेश भी है
गांव के एक सहपाठी ने अभी फोन करके बताया है
बजरंगबली के विसर्जन-जुलूस में असलहा कम आया है
शहर-शहर, गांव-गांव दूर तक लीक दिखने लगी है
रावण दहन देखने भीड़ अब उमड़ने लगी है
त्योहार में तमाशे की यहां कभी कमी नहीं होती
लेकिन अबूज़ीज़ी की मौत पर यहां क्रांति नहीं होती
रावण दहन के लिये रामलीला मैदान पर भीड़ भारी है
तहरीर चौक की तलाश आज भी जारी है