शहर में लोगों का समंदर,
आंखों में सैलाब आ गया है
गोया साहब के जनाज़े से भी
इन्किलाब आ गया है.
रीढ़वालों की नाप से उसने
बारहा छोटे रखे दरवाज़े
उसी क़िले में अब रहमत का
दयार आ गया है.
फरेब है कि नफ़रत और दहशत नज़ीर
नहीं बनतीं
नवीसों को भी उसकी रहनुमाई
पर एतबार आ गया है.
बदल गये आज मुल्क और मुहब्बत
के मुअज़्ज़िन
जन्नत तक पेशवाई, दर तक
परवरदिगार आ गया है.
कैसे मान लूं गुमनाम ही
गुज़र जाऊंगा मैं यारों
मेरी तबीयत में भी अब ठाकरे
सरदार आ गया है.