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सोमवार, 19 नवंबर 2012

बाल ठाकरे





शहर में लोगों का समंदर, आंखों में सैलाब आ गया है
गोया साहब के जनाज़े से भी इन्किलाब आ गया है.

रीढ़वालों की नाप से उसने बारहा छोटे रखे दरवाज़े 
उसी क़िले में अब रहमत का दयार आ गया है.

फरेब है कि नफ़रत और दहशत नज़ीर नहीं बनतीं
नवीसों को भी उसकी रहनुमाई पर एतबार आ गया है.

बदल गये आज मुल्क और मुहब्बत के मुअज़्ज़िन  
जन्नत तक पेशवाई, दर तक परवरदिगार आ गया है.

कैसे मान लूं गुमनाम ही गुज़र जाऊंगा मैं यारों
मेरी तबीयत में भी अब ठाकरे सरदार आ गया है.