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शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

मेरे हमदम

मेरे हमदम तेरे आगे मैं इक अफसाना लिखता हूं
थोड़ा ज़िद्दी,थोड़ा पागल,थोड़ा दीवाना लिखता हूं.
तुझे ज़िद है कि मैं बोलूं, मेरी मुश्किल पुरानी है
ज़ुबां दिल की मिले फिर मैं, दिन रात लिखता हूं.
कई रातों की उलझन है, कई बातें सुनानी हैं
जो धरती से कहे चंदा, वो सारी बात लिखता हूं.
मुझी से है मोहब्बत और मुझसे ही लड़ाई है
तू भी तो यार है मुझसा,यही हर बार लिखता हूं.
कहीं रिमझिम, कहीं रुनझुन,कहीं रुत आसमानी है
तू मौसम है मेरे दिल का, मेरी कायनात, लिखता हूं.
ज़मीं होकर फ़ना होना, फ़ना होकर ज़मी होना
सनम इस इश्क़ पे सौ जिंदगी क़ुर्बान लिखता हूं.