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रविवार, 19 जुलाई 2015

फूल


जहां सच और सपने मिलते हैं
वहां उगते हैं
फूल.
पूजा की थाल में आस्था हैं
देवता तक मनोकामना ढोते हैं
फूल.
प्रेम का नीरव संगीत हैं
होंठों के गीले कोरों पर
आत्मा की भाषा लिखते हैं
 फूल.
आधा जल हैं, आधा सुगंध
आधा विश्वास हैं, आधा निर्बंध
आधा पुरस्कार हैं, आधा द्वंद
ओस की आखिरी सांस में बचे रहते हैं
चिता की पहली आंच में सजे रहते हैं
फूल.

फूलों ने जीवन को मुस्कान दिए
घर को आंगन
धर्म को ईमान
संबंध को मर्यादा
परिश्रम को परिणाम
मकान को खिड़की-दरवाज़े
खेत को खलिहान
और धरती को हरियाली भी
फूलों ने ही दिए
जहां इंसान नहीं होता
कोई पशु-पक्षी तक नहीं
कोई आवाज, कोई उम्मीद, कुछ भी नहीं
वहां भी खिलते हैं
फूल.

फूलों को धंधे में उतारता है बाज़ार
समय से पहले पनपाए-गदराए जाते हैं
बनाए जाते हैं चमकदार-गमकदार
हर सुबह, हर शाम
हजारों करोड़ का होता है कारोबार
खुली धूप, हवा से परे
चमकदार-शानदार कमरों में
सजाए जाते हैं
हर रात थमाए और ठुकराए जाते हैं
रौंदे-कुचले जाते हैं
जो रंग और सुगंध के दुश्मन होते हैं
उनकी शान में बिछाए जाते हैं
फूल.

कोई अनसुना संगीत
कोई अजनबी गीत हैं
फूल.
आल्हा-फाग-रागिनी
सोरठी-बिरहा-कजरी
सबके सुर मिल जाते हैं कुछ-कुछ
कुछ बंदिशें पता नहीं किस देश की हैं
समझ नहीं आता
जैसे कोई नदी रोती हो खून के आंसू
जैसे कोई पहाड़ पछाड़ खाता हो
जब बामियान में बुद्द टूटते हैं
बगदाद में बम गिरते हैं
सीरिया के खेतों में खून बहता है
दजला फरात की घाटियों में
कश्मीर की वादियों में
चीखते हैं-दहकते हैं
फूल.