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बुधवार, 15 जुलाई 2015

डायरी मेरी ज़िंदगी का दस्तावेज सी हैं. जब कभी पलटता हूं तो सबकुछ दिखने सा लगता है. 22-23 की उम्र में जो डायरी मेरे पास थी आज उसको निकाला. उस वक्त जो कविताएं लिखीं उनमें से कुछ आपसे साझा कर रहा हूं.

सुनो श्यामली
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श्यामली!
आज महीनों बाद तुम्हें लिखने बैठा हूं
इसलिए नहीं कि मेरे पास लिखने को कुछ नहीं
या तुम्हें भूलने की कोशिश में था
दरअसल मेरे पास तुम्हारे सवालों के जवाब नहीं
और अब भी टटोल ही रहा हूं.
इतने दिनों में न जाने कितनी बार
कांपा होगा तुम्हारा मन- कंप से
धड़का होगा हृदय - धक से
छलके होंगे नयन - छल से
भीग गया होगा तकिया जल से
जिनके कोमल रेशों से होकर कई सवाल
जा गिरे होंगे तुम्हारे सिरहाने निढाल
केन सारोवीवा, नज़ीब और दलाई लामा होंगे
नरसिम्हाराव, सुखराम और लालू भी होंगे
और वहां होऊंगा मैं भी
वहां होंगी कुछ टूटी चूड़ियां
कुछ उजास राहें
कुछ बिछड़े तारे, कुछ तड़फड़ाती आहें
और किश्तों में जमा हंसी भी
इस चिट्ठी को पाते ही
उन सबको समेटकर भेजना
शायद उन्हीं के बीच कहीं खोए हैं
वे सारे जवाब जिन्हें
तुम्हें भेजना चाहता हूं.

श्यामली !
मेरी अलगनी पर
अभी जो कबूतर बैठा है
उसे मैं पसंद नहीं करता
इसलिए नहीं कि मुझे शांति पसंद नहीं
बल्कि इसलिए कि वो
विरोध का भाषा नहीं जानता
और खुली आंख ही हलाल हो जाता है.
मुझे मोर पसंद है
जो मौसम के साज़ पर थिरकता है
और विषधर का मान-मर्दन भी करता है
मुझे नेवला सुंदर लगता है
कोमल काया का दुर्धर्ष योद्धा.
हमारी त्रासदी यह है कि
हम आज भी कबूतर में विश्वास करते हैं
मोर को चिड़ियाघरों में रखते हैं
और नेवले को खेत-बधार में.

श्यामली
प्रेम और दुर्घटना एक ही होती हैं
घटने के बाद ही मालूम पड़ती हैं
दोनों का बुखार धीरे धीरे
उतर ही जाता है
फिर हम दिन तारीखों में लपेटकर
इन्हें एक भीड़ में धकेल देते हैं
जहां हर चीज औपचारिक होती है.
हम इतने औपचारिक होते जा रहे हैं
कि प्रेम और दुर्घटना का फर्क मिटता जा रहा है
बस कुछ शब्दों के हरफेर
और मुद्राओं को फेरबदल का मामला सा लगता है
ऐसे में क्या तुम्हें नहीं लगता
कि प्रेम भी एक दुर्घटना ही है.

चौराहे की मूर्ति
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यह सोचकर वह सफर पर निकला
कि कहीं भी घर बसाने के लिए
पर्याप्त होगी उसकी हथेलियों की पूंजी
जिनमें उसने सहेजकर बांधा था
एक टुकड़ा धरती
और एक टुकड़ा रोशनी.
सामने बंदूक की नोंक पर
जब टंग गयी सांसें
तो अनायास खुल गयीं मुठ्ठियां
फिर उसे बाइज्जत बख्श दिया गया.
अब उसके हिस्से में था
पूरा का पूरा आसमान
भरे पूरे चांद-सूरज
बादलों की आबाद बस्ती
और तारों की बेशुमार दुनिया
ऐसे में
सिर्फ निहारने के सिवा
और किया भी क्या जा सकता था.
लोगों ने कहा -
वह मर गया लेकिन चांद तारों की ख्वहिश नहीं छोड़ी
शहर के बीचोबीच खड़ी उसकी मूर्ति
अदम्य इच्छाशक्ति की प्रेरणास्रोत मानी जाती है.