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रविवार, 5 जुलाई 2015

आशा

रात-विरात
दिन-दोपहरी
वह मेरे आंगन में गिरी
धम.
कणों में कंपन हुआ
हवाओं में स्फुरण
आकाश में बिजली
कौंधी.
मैंने खिड़की से बाहर देखा
नंगे पर्वतों पर
बर्फ जम आई थी
वह नदी से लौट रही थी
तेज़कदम.
बाग में फूल निकल आए थे
दरवाज़े पर दस्तक हुई
खट.
आकाश से
बूंदे टपकीं
टप..टप..टपाटप.