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बुधवार, 9 सितंबर 2015

सुनना


कभी कभी बहुत कहकर भी 
अधूरा लगता है
कभी कभी बिना कुछ कहे भी 
पूरा लगता है
कुछ होता है जिसकी भाषा नहीं होती
कुछ भाषाएं होती हैं जिनका कुछ नहीं होता
एक दुनिया है शब्दों से परे
कुछ अनाम शब्द हैं
दुनिया से परे
पेड़ पेड़ से कुछ कहते तो होंगे
मुर्गे की बांग, कोयल की कूक का
मेंढक की टर्र टर्र, पपीहे की हूक का
कुछ मतलब तो होता होगा
नदी का गीत कोई समझता तो होगा
सन्नाटे की आवाज कोई सुनता तो होगा
मैंने कुछ नहीं कहा
ऐसा जरुरी नहीं
तुमने सुना नहीं
यह भी तो हो सकता है.