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बुधवार, 9 सितंबर 2015

बिहार : चुनाव का सर्कस



पटना के गांधी मैदान में महागठबंधन की रैली हो गयी. १ तारीख को भागलपुर में मोदी की रैली होगी. बिहार में अगर आप इनदिनों जाएं तो आपको मेले जैसा माहौल लगेगा. कोई गली नुक्कड़ नहीं बचा जहां पोस्टर बैनर नहीं लगे हों. दुकान-ठेले पर चुनाव चरित्र पर चाव से लोग बोल बतिआ रहे हैं. फिर एक बार नीतीशे कुमार और अबकी बार भाजपा सरकार के नारे पटे पड़े हैं. जिस राज्य में रोजगार आज भी बड़ा सवाल है, ह्यूमेन इंडेक्स पर जो राज्य देश में पिछली कतार में खड़ा है, उस राज्य में जो खेल चल रहा है वो भद्दा मजाक ही है बस.
हाल ही में गया गया था. रास्ते में एक जगह चाय-पानी के लिए रुका. चाय की गुमटी पर जेडीयू के पोस्टर लगे थे . बगल में दो खपरैल मकान थे जिनके बीच एक पतली गली पीछे खेत में जाती है. गली में दोनों घरों के आंगन से नाला निकल कर साझा हो रहा था. उसी गली में नाले की दोनों तरफ बची डेढ दो फीट की जमीन पर तीन छोटे बच्चे खेल रहे थे. इन्ही में से एक बच्चा जेडीयू के पोस्टर का एक टुकड़ा पकड़ कर लहरा रहा था . बचे हिस्से पर लिखा था - आगे बढता रहे बिहार. दूसरा हिस्सा कहीं हवा उड़ा ले गयी होगी. इन तीनों बच्चों के शरीर पर कपड़े नहीं थे . एक घर के दरवाजे से अंदर झांका तो एक महिला सूप से कुछ फटक रही थी. आगन के पार जो दीवार थी उससे सटा मिट्टी का चूल्हा था जिसके पास एक तसली औऱ एक कड़ाही पड़ी थी. बीमार अपाहिज आदमी की देह जैसी दोनों की दोनों दिख रही थीं. यही कोई दोपहर १२.३० के आसपास का समय रहा होगा. उस फटीचर टाइप मोड़ पर सामने सड़क के ऊपर बैनर लटका था जिसपर नरेंद्र मोदी की तस्वीर थी. नीचे लिखा हुआ था- तेज होगी विकास की रफ्तार, अबकी बार भाजपा सरकार. पटना से २००-२५० किमी का फासला तय किया होगा. मजाल है कहीं ऐसा लगे कि कुछ बेहतर हुआ है सिवाय राष्ट्रीय राजमार्ग के. सड़क की दोनों तरफ मवेशियों की चरवाही पर निकले बच्चे फुटबॉल उड़ाते या क्रिकेट खेलते या फिर निपट टंडलई करते दिखे. लोग ताश पर या फिर किसी साये में बैठकर टाइम पास करते दिखे. महिलाएं आगे पीछे बैठकर बालों में जूं तलाशती दिखीं और खपरैल या फिर फूस के घरों की कई बस्तियां दिखी. बिहार में आप किसी भी हिस्से में जाएंगे तो ज्यादातर जगहों पर मैंने जो अभीतक बताया है उससे १९-२१ ही आगे पीछे होगा. इसमें आप चुनाव के नाम पर पैसे का बेहुदा खेल खेल रहे हैं. लोगों की गरीबी औऱ अपनी बेशर्मी का इश्तेहार बांटे फिर रहे हैं. नीतीश कुमार के मौजूदा प्रचार अभियान पर ३०० करोड़ खर्च किए जा रहे हैं और बीजेपी भी भारी भरकम रकम बहा रही है. गली नुक्कड़ चौराहे तक पोस्टर हैं, पैम्प्लेट्स लेकर दौड़ रहे रथ हैं और अपनी स्थिति से बेफिक्र लुंगी खोंट , शर्ट का आधा बटन खोल, पगड़ी बांधे , पसीने से तर-ब-तर , हाथ लहराते , मस्ती में बतिआते लोगों का झुंड चुनाव प्रचार के पीछे दिखने लगा है. जाति का जहर असर करने लगा है, लामबंदी तेज करवाई जा रही है औऱ हो भी रही है. कोई दलित का पत्ता फेंक रहा है , कोई पिछड़े का और कोई मुसलमान का . कुल मिलाकर अपना काम बनता, भांड़ में जाए जनता वाली लाइन पर पूरा काम चल रहा है. कल चुनाव होगा और नतीजा भी आएगा. कोई जीतेगा, कोई हारेगा. कोई सरकार बनाएगा, कोई विपक्ष में बैठेगा. लेकिन इस पूरे खेल में बस बिहार ठगा जाएगा. नेताजी लोगों का क्या है - आज यहां कल वहां. पेट और आखेट दोनों भरपूर मिलता ही है. माल मलाई की दिक्कत होती नहीं है. एक बार विधायक जी हो गए तो कम से कम दो पुश्तों को तो सोचना नहीं ही पड़ेगा. साली जनता तो बुरबक है, चौपट लोग हैं . ना चलने का शऊर , ना बोलने बतिआने का तरीका. रुखा सूखा कुछ भी खाकर जिनगी काट ही देते हैं. बाल बच्चा कुछ किया तो ठीक नहीं किया तो राम भरोसे . ऐसे चौपट लोगों को चुनाव तक खूब दौड़ाओ, तरह तरह का नारा- चारा खिलाओ. नाटक नौटंकी दिखाओ. पुचकारो पोल्हाओ. जैसे भी हो अपना काम बनाओ. फिर तो पांच साल बाद ना. अभी तो गला फाड़ चिल्लाइए- फिर एक बार नीतीशे कुमार या फिर अबकी बार भाजपा सरकार.