यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

बीचयू में लिखी कविता ( मार्च 1996) : कपड़े



कपड़े होते हैं 
पूरा का पूरा जिस्म
जिनमे बजता है शरीर का संगीत
क़ाबिज होती है
बांह की जगह बांह
छाती की जगह छाती
और कमर की जगह कमर 
वे नहीं होते पियरे कार्डिन, वॉन ह्यूज़ेन
लेवाइस या फ्लाइंग मशीन अलग से
कपड़ों से होकर संचारित होता है रक्त
सरकती रहती हैं सांसे
और रची बसी होती है पसीने की गंध
वहीं कहीं
एक इंसान के जीवित होने की सारी संभावनायें महफूज़.

कपड़े जरुरी हैं
ताकि पहचाना जा सके नंगापन
बची रह सके पहचान
या फिर बचाई जा सके द्रौपदी
कपड़़े नहीं होते रौशनी
जिसमे खुलते हैं सारे सच अचानक
कपड़े अंधेरा भी नहीं होते
जिसमे गुम हो जाती हैं
सारी छोटी बड़ी चीजें अपने बोध के साथ

कपड़े पानी होते हैं
जिसमे सुरक्षित रहती है नमी
ताकि समय पर अंकुरित हो सकें बीज
बचा रहे कली और फूल का अंतर
हर सुबह हवा में मिले ताज़गी
और शेष रहे
पहली फुहार की सोंधी गंध.