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रविवार, 23 दिसंबर 2012

प्रदर्शनकारी ( शेष)





प्रदर्शनकारी , क्रांति के अग्रदूत होते हैं
वे नायक नहीं होते इसलिए उन्हें कोई नहीं जानता
जो झंडा लेकर सबसे पहले दौड़ा था और गोली खायी थी
जो रातभर हवालात में पिटा और सुबह मर गया लेकिन गलत गवाही नहीं दी
जो किसानों के अधिकार के लिये अनशन पर बैठा और उसकी मौत की खबर तक नहीं लगी
जो खाप पंचायतों के तालिबानी फरमान के खिलाफ खड़ा हुआ और सुबह पेड़ पर लटकता पाया गया
जो बड़े सरकारी घोटाले का पर्दाफाश करने से पहले ही अगवा हो गया
वे सब प्रदर्शनकारी ही थे
उनकी कोई प्रतिमा आपने कहीं नहीं देखी होगी  
उनके नाम के चौराहे, सड़कें ,गलियां भी नहीं होते
कहते हैं प्रदर्शनकारियों की रगों में जबतक ख़ून है
वो व्यवस्था में ज़रुरी बदलाव के लिए लड़ते हैं
लेकिन जब ख़ून उनकी आंखों में उतर आता है
फिर व्यवस्था ही उखाड़ फेंकते हैं प्रदर्शनकारी
गद्दाफियों और मुबारकों जैसों के अंत के लिए
चाहिए ही चाहिए
प्रदर्शनकारी .