यादों के देवदार पर मौसम की तरह उतरो
अरसा हुआ लौटे चांदनी दिनों के काफिलों के
अंधेरे में हरसिंगार उजाले में चिनार बन जाओ
बस्ती में बढने लगे हैं डेरे हमशक्ल वफाओं के
गर कर सको हिम्मत तो मेरे साथ चलो
आसान नहीं पता ढूंढना आवारा मंज़िलों के
कुछ नहीं बस हथेली भर जमीन बन जाओ
आसमां होगा मगर घर नहीं होते बादलों के
गंगा हो मौजों में मेरी रोशनी भर लो
अंधेरों में सजा लेना पास अपने किनारों के