यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 16 जुलाई 2014

आवारगी



मंदिर से गुज़रा हूं मौजों पर मस्ताना 
पात पर दीया हूं कहीं तो जाऊंगा .

रातों को महकाया है सुबहों को सजाया 
हरसिंगार बन झड़ा हूं खुशबू संग मुरझाऊंगा.

तन्हाई की हंसी वेवक्त का ख्याल सही 
तेरे नाम अपना कुछ तो कर जाऊंगा.

उजास राहों पर लीक पीली दूब की
रहगुज़र को दूर तक नज़र आऊंगा.

खाली घोंसलों की तरह राह तकते तकते
हवा की ठोकरों में तिनका बन जाऊंगा.

घर की चौखट पर सांझ का दीया
अंधेरों से लड़ते मरते सुबह कर जाऊंगा.