स्याही भर सपना
आँख भर पानी
और छाती भर रिश्ता
इससे ज़्यादा उसे
कुछ चाहिए भी नहीं था ।
उसमे बची थी
ठंडे चूल्हों की आंच
जिंदा थी
बंजर होते जाने की बेचैनी
बाकी था
पसीने में नमक भी
नहीं तो लीक को लातिआने की ताकत
खबरखोरी ने छोड़ी कहाँ है !
वक्त सोख लेगा
कपडों में बसी उसकी गंध
तस्वीरों पर धुंध डेरा दाल देगी
सूख जाएगा शब्दों का हरसिंगार
लेकिन जब कभी कोई
कद भर ही नज़र आएगा
शोर सन्नाटे का गीत गायेगा
या फिर कोई आवारा
सड़कों को रात भर जगायेगा
वो अगले मोड़ पर
सजधज कर
नई नज़्म के साथ नज़र आएगा।