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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

वो क्यों रोते हैं....?

आजतक के छपरा स्ट्रिंगर आलोक जयसवाल का ई मेल आज उठते ही देखा । कहानी ऐसी है कि छोटे शहरों के लोगों को बात आसानी से समझ में आ जायेगी लेकिन बड़े शहरवालों के हलक में ही सच फंस जाएगा और फ़िर बौद्धिक वमन करने के बाद ही उन्हें चैन पड़ेगा। मामला छपरा स्टेशन पर १७ अप्रैल की रात का है । धंधा करनेवाली एक लड़की से एक लड़के ने सौदा किया लेकिन बाद में चार लड़के हो गए । पैसे का हिसाब बिगड़ा और लड़की ने भगवन बाज़ार थाने में रेप की शिकायत दर्ज करा दी । एक लड़का पकड़ा गया है , बाकी को पुलिस तलाश रही है । अब ज़रा ऍफ़आईआर का मजमून सुनिए । लड़की ११ बजे छपरा से थावे जानेवाली ट्रेन में अपने पिता के साथ बैठी थी और वक्त करीब ११ बजे रात का था । अचानक ट्रेन में ४ बदमाश घुस आए और चाकू की नोक पर लड़की को स्टेशन के पीछे ले गए फ़िर रेप किया । अब पुलिस को ये पता नहीं कि उस रात ट्रेन ९ बजे थावे जा चुकी थी और उसके जाने का वक्त भी वही है । शिकायत के बावजूद लड़की का पिता आजतक नज़र नहीं आया । लेकिन दिल्ली में बैठे उदय भास्कर को इसमें ८४ के दंगों की बू आती है । अब उन्हें कौन समझाए की समाज की कड़वी सच्चाइयाँ स्त्रतेजिक अफेयर्स से कोसों दूर होती हैं । एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर ज़मीन के सवाल उठाना आत्म सुख के लिए तो ठीक है लेकिन उसमे आत्मा का सूखा हमेशा पड़ा रहता है। देह के धंधे को किसी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन अपने धंधे को चमकाने के लिए देह कि आड़ नहीं ली जा सकती - इसके लिए ज़मीन पर उतरकर लडाई लड़ी जाती है । वैश्यावृत्ति इस देश में विमर्श का सामान बनकर पलती पनपती रही है लेकिन विरोध और जीविका के विकल्प की लड़ाईयां संकल्प के साथ नहीं लड़ी जाती । दोस्तोवस्की से लेकर शरत बाबू और महेंद्र मिश्रा को तो समाज के कोढ़ का सारा सच पता था क्योंकि उनका जीवन उस सच के धरातल पर खड़ा था । ये उदय भास्कर जैसे बुद्धिजीवियों की कलम से अरण्यरोदन की तरह लगता है ।

जाते जाते आज फ़िर वो जो ख़ुद के लिए लिखा था -

जेठ की धुप थी , बरसाती बजबज पानी था / रिसता हुआ एक रिश्ता मिला , जब देखा वहां कि क्या था

उसकी हाँ मासूम थी , बेशक थी ना भी / यकीन मेरी भूल था, वो था तो आदमी saari ईटें चाची की , माँ को मिली बस मिटटी / आँगन भी जितना मिला , मेरे लिए था गाजापट्टी

देश क्या दुनिया क्या , अब तो सब बित्ते भर में / दिल्ली में दुर्गन्ध है , लाशें बग़दाद कर्बला में

वो अदबी लोग हैं , सलीका सवूर तो पूछेंगे / नहीं आएंगे पास अगर तेरे हाथ आईना देखेंगे

1 टिप्पणी:

Manish, E Tv, Agra ने कहा…

nitish laloo ke behtar hai lekin bihar ke sare patrakar unke mouthpiece kyo banne ko betab hai ?