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रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अफसोस



जैसे कम खाने की सोचना
और फिर भी ज्यादा खा लेना
जैसे ज़ायकेदार निवाले का
मुंह तक आकर गिर जाना
जैसे किसी का चेहरा पोंछते समय
उंगली का आंख में घुसड़ जाना
जैसे घर में बचे खुचे आटे में
अंदाजे से ज्यादा पानी गिर जाना
जैसे समय पर निकलने
और घर लौटने की कसम का रोज़ टूटना
जैसे किसी ज़रुरी काम का
समय गुज़र जाने पर फौरन याद आना
जैसे किसी चेक का
मियाद निकल जाने के बाद कहीं रखा मिलना
जैसे मिनट भर की देरी से
ट्रेन का सामने से निकल जाना
जैसे एक अदद लापरवाही का
बड़ा नुकसान दे जाना
जैसे संभाल लेने के बाद
बेशकीमती चीज का फिसलकर टूट जाना
जैसे किसी की चुगली करते
समय उसका वहीं कहीं खड़ा रहना
जैसे प्रेम में वेबवजह लड़ना
और उसको चुपचाप जाते देखना.