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रविवार, 1 जनवरी 2017

नए साल पर नए संकल्प


नए साल पर नए संकल्प के साथ जीवन में नया करने की बात कहने की परंपरा रही है. ठीक से देखे तो हर वक्त नया है- सेकंड के बाद अगला सेकंड, मिनट के बाद अगला मिनट और इसी तरह घंटा, दिन, हफ्ता, महीना, फिर साल. दरअसल जीवन में सांस-सांस नई है. मुझे हमेशा लगता रहा कि नया करने का संकल्प किसी भी समय लिया जा सकता है, क्योंकि जीवन जब देखिए तभी नया है. लगातार नयेपन से गुजरते जीवन में कुछ ऐसा होना चाहिए जो नहीं बदले और कुछ ऐसा बदलना चाहिए जो फिर ना हो. 
हमें कैसा जीवन चाहिए.? हम जीवन में क्या कर सकते हैं? हम खुद से क्या उम्मीद करते हैं? उस उम्मीद को पूरा करने के लिये खुद क्या कर सकते हैं? और सबसे बड़ी बात कि हम जीवन में चाहते क्या हैं? यह एक पक्ष है जिसका दूसरा पक्ष ऐसी ही बातों का हमसे जुड़ा होना है. यानी हमसे परिवार क्या चाहता है या परिवार को लेकर हमारा फर्ज क्या है? मित्र-शुभेच्छु क्या चाहते हैं? समाज क्या उम्मीद करता है? और यहां भी बड़ा सवाल ये कि ऐसी तमाम जिम्मेदारियों और उम्मीदों को पुूरा किस कीमत पर करते हैं. यानी ऐसा करते हुए कुछ गंवाते हैं या फिर बनाते हैं. दरअसल बनाने के चक्कर में हमें गंवाने का अहसास ही नहीं होता. ये जो अहसास है इसको हमारा समाज, हमारी परंपरा ( कभी कभी रुढियां भी) और कथित नैतिकता पैदा नहीं होने देते. हमें कोल्हू के बैल की तरह जोत रखा गया है. नतीजतन, आपके पास कुछ देखने-सुनने की गुंजाइश ही नहीं रहती. 

जैसे मान लीजिए कि कोई वैज्ञानिक है या साहित्यकार है या पत्रकार है या समाजवसेवी या फिर कारोबारी है - कुछ भी ऐसा हैै जिसके पास बेहतर करने की संभावनाएं और क्षमता दोनों हैं. अब इस आदमी को पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के नाम पर वैसे काम करने पड़ते हैं जिनसे उसके समय का हर्जाना होता है और जो काम उसे करना चाहिए उसे वह नहीं कर पाता है. ऐसे में उसको सोचना चाहिए, क्योंकि उसका विकास नहीं ह्रास हो रहा है. अब यह बात व्यक्ति सापेक्ष है, इसमें भी कोई शक नहीं है. मतलब ये कि हम जो कर रहे हैं उससे जरुरी और बेहतर कुछ और कर सकते हैं तभी ये सोचना जरुरी है. 

सच ये है कि इस तरह से हम अमूमन नहीं सोचते. हम नौकरी करते हैं, सब्जी भाजी लाते हैं, घूमने-फिरने जाते हैं, हंसी-ठहाके पर समय को कुतरते जाते हैं, मेले-ठेले, रिश्ते-नाते में रमते जाते हैं, परिवार की जिम्मेदारियों को कई दफा बेवजह लादे फिरते रहते हैें और अमूमन बेहतर करने के लिये जरुरी माहौल के ठीक उलट स्थितियों और मानसिकता में पहुंचा दिए जाते हैं. लेकिन कभी ये नहीं सोच पाते कि हम क्या खो रहे हैं. जो मौके हमारे पास हैं और जो प्रतिभा-क्षमता हममे है, दरअसल उसका हम अपमान कर रहे होते हैं. इसका अंदाजा समय गुजर जाने के बाद शायद होता है. 

इसलिए सबसे जरुरी ये है कि हम ठीक से ये समझ पाएं कि जो अपना सर्वेोत्तम कर सकते हैं और जो कर रहे हैं उसके बीच फासला किन वजहों से है. इन वजहों को कैसे कम किया जा सकता है और अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिये कितना श्रम-संसाधन लगाया जा सकता है. इस नजरिए से खुद को जब भी देखने लगते हैं समूचा जीवन-दर्शन बदल जाता है. 

मैने तभी कहा कि जब हर पल नया है और जीवन लगातार नएपन से गुजर रहा है
तो इसमें जो नहीं बदलना चाहिए उसको बनाए रखने का संकल्प लें और जो तुरंत बदल जाना चाहिए उसको आगे ना रखने का मन बनाएं. जीवन बस समय है जिसको इस आधार पर तौला जाता है कि आपने क्या दिया. क्या किया इससे नहीं. अब इस क्या देने में जो भी जरुरी तत्व हैं- मसलन प्रेरणा, संबल, ऊर्जा, साहस, संसाधन - वे जहां से मिल रहे हैं उनको संजोए-बचाए रखने की हर जरुरी कोशिश करें. आप सबों के जीवन में प्रेरणा का पर्व रोज रहे, ऊर्जा का उत्सव रोज चले, समय का सम्मान रोज हो और सफलता का संधान रोज हो. नए वर्ष की असीम शुभकामनाएं.