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मंगलवार, 26 अगस्त 2008

क्योंकि बोलना ज़रूरी है

ब्लॉग्गिंग की दुनिया आबाद होने लगी है । कहने की जितनी वजहें होती है उससे कहीं ज़्यादा वजहें चुप रहने की होती हैं । ब्लॉग की दुनिया ने उन वजहों की जुबान गांठ दी है । इतना ही नही बल्कि इसने इतना बड़ा दायरा खड़ा कर दिया है जिसमे कहने का हर कायदा फिट बैठता है । आप साहित्य नही लिख सकते कोई बात नही, अख़बारों के लिए नही लिख पा रहे तो जाने दीजिये, पत्रिकाओं में भी जुगाड़ नही बैठ पा रहा तब भी चिंता नही - आप मनभर लिख सकते है या यूँ कहें की कह सकते हैं । और जब कभी आप ऐसा कर रहे होंगे उस वक्त आपके कहे-लिखे को देखने-सुननेवाला आप ही होंगे । यही वजह है कि लिखने कहने के सार्वजनिक साधन संसाधन से आपके परहेज़ या फ़िर न लिख पाने कि तमाम वजहों को ब्लॉग मिटा देता है। मैं टीवी पत्रकारिता के पेशे में हूँ और शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई । १० साल दिल्ली में रहने के बावजूद जब कभी आसमान भर तारे दीखते है या देर बारिश कि आवाज़ आती है तो गांव याद आता है। दिल्ली की सीमा पर के गांव में बैलगाड़ी के पीछे ladke दौड़ lagaate हैं aur उसपर सवार होने के लिए एक दुसरे से धक्का mukki करते हैं तो गांव याद आता है। अगर आप गांव में रहे होंगे तो आपको नीम की मीठी chhaon याद आती होगी, pokhar kinare bansi लगाना याद आता होगा । बारिश की gili shaam और बस्ती के ऊपर choolhon के dhuen की dhundh भी याद आती होगी। इस याद का आना ही कहने की शुरुआती वजह देता है और फिर वजहों का एक लंबा सिलसिला होता है जो कहने को बेचैन करता है । ब्लॉग उससे बहार निकलने का बेहतरीन रास्ता है ।

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